Thursday, April 25, 2013

विचारों की आवाज


                              
1-निषाद के कुल देवता कालुदेवा, काशीदास बाबा, कोइलवीर बाबा आदि है। यह देवता, निषदों के लिए अक्षर से शुरुआत होने से यह महसूस हो रहा है,की निषदों का कल है। -जय निषाद -जय भारत
2-बढ़ते हुए कदम को रोका न कर,जैसा माझी नाव को आगे बढ़ता ही है, न की रोक लेता है, तेरा मेरा कदम पानी के विपरीत धारा में बढ़ता रहा लेकिन सामाजिक पानी में पीछा रह गया । सामाजिक पानी में अपने को पतवार बना और आगे बढ़,अपने महान पूर्वजों के विचारों को नाव बना। और आगे बढ़..................यही से तेरी  मेरी पहचान बनेगी
3--जाति-समाज की पहचान जनसंख्या से नहीं होती योग्यता से होती है । निषाद समाज को आज देखा जा सकता----
4-मछुआरा पानी को पीट कर मछली मार लेता है। सामाजिक पानी में उसे पानी पीला कर लूट लेते .....ये क्या हो रहा है ....मछुआरों  तेरे साथ ...........
5-निषाद समाज अपने महान पुरुषों के तलास कर और उनके विचारों को आगे बढ़ाये नहीं तो हाशिये के समाज बन कर रह जाएगे ..............
6-मछुआरा जब तलाब, नदियों में जाता है, तो उसकी नजर मछली मारने और पकड़ने के आशा के साथ जाता है और मछली पकड़ता है। मछली पानी के बाहर आने के बाद उसकों सांस लेने में दिक्कत होती है और छटपटा कर रह जाती है। दम तोड़ देती है। मछुआरा जैसे पानी से बाहर आता है। मछली के तरह मछुआरो भाव लगने लगता है। जैसे-चुनाव में,किसी के घर पर काम करने में आदि है, मछली के तरह बिकता रहता है,
7- सामाजिक जीवन में वह नहीं समझ पा रहा है की कब हमें अपने नाव को किनारा करना है। जिसे हमारा सामाजिक रूप से विकास हो सके
                                                      लेखक 
                                                 बलराम बिन्द 

No comments:

Post a Comment