भारत
के मूल निवसी जो कभी भारत का राजा हुआ करता था। और सासन और प्रशासन का बागडोर को सँभलता
था। उसके तीरंदाजी और आखेटवाजी का कोई सनीं नहीं था। उसको बौद्धिक स्तर और पूरे विश्व
मे चरचा हुआ करता था। इस बौद्धिक स्वरूप बदलता गया और आज हाशिये का समाज बन बैठा है
आज जो बौद्धिक का परिचय गरीबी और शिक्षा का इसके सामने लाचारी बन गई है।
ग्रामशी
के अनुसार ज्ञान के उत्पादन और वितरण में लगा हुआ व्यक्ति बुद्धजीवी कहलाने का हकदार
है। ग्रमशी ने बुधजीवी को दो श्रेणियों में विभक्त किया है। पहली श्रेणी पारंपरिक बुद्धजीवी
की है जो जिन्हे समाज में शिक्षक ,पुरोहित प्रशासन, के रूप में जाना जाता है,जो पारंपरिक ज्ञान को आगे बढ़ाने का काम करते है। और जो दूसरे श्रेणी के वर्ग
है जो जिसका मुख्य उद्देश्य अपनी वर्गीय सत्ता और नियंत्रण के लिए बुद्धि का प्रयोग
करता है जैसे में आज कारपोरेट घराने है,
समाज
में निषादवाद बौद्धिकता की भी एक विशिष्ट भूमिका है। वह अब हर जगह नजर आ रहा है आज
निषाद समाज या मछुआ समाज (दलित पिछड़ा ) आज अपने हक के लिए सक्रिय रूप में कदम रख रहा
है, आज अपना मत जाहीर करने की भाषा उनके पास
है, निषाद या दलित पिछड़ा आज सदियों की खामोशी टोडी है। उसके नियत
में बदलाव है। उसके व्यक्तिगत जीवन का उद्देश,दर्शन, उसका मन-मिजाज बदल रहा है और इस नई भूमिका की अपनी धार है। वह आज हक हक के
लिए सत्ता के लिए सवाल कर रहा है, बल्कि औरों के लिए भी वह रूढ़वादी
परंपरा और बैचरकी दूरगाहों को खगलने का काम कर रहा है।
आज
वैदिक संस्कृति को समझने के लिए सबसे पहले हमें सत्ता के स्वरूप और उसके प्रक्रियों
को समझना होगा। सत्ता का होना शासित पर निर्भर करता है, यानी शासक और शासित पर निर्भर करता है, मालिक और गुलाम दोनों को एक दूसरे की जरूरत है मगर दोनों की हैसियत यानी धरातल अलग-अलग है,सत्ता चाहेगी की शासित अपनी यथास्थिति में बना रहे। जिस प्रकार से जातीय और
वर्ग के रचना में बिभक्त कर के एक जाती से दूसरे जाती को बड़ा बता कर आपने राज्य सत्ता
को कायम रखा गया है इस का मूल्यांकन करना की जरूरत है।
आज
निषादवाद से केवल शोषण और दमन की चर्चा ही नहीं आज जनांदोलन के संवाद स्थापित करने
की जारूरत महसूस किया जा रहा है जिस प्रकार से इस समाज को छुद्र और समाज से वाहिस्कृति
करके रखा गया, और जीवन जीने के आधार को
ही छिन लिया गया और और उसके बौद्धिक विकाश का ही स्वरूप बदल दिया गया इस तथ्य को समझने
की जरूरत है।
जिस
प्रकार से बौदिक संस्कृति में एकल्भय के साथ किया गया और गुह्य राज निषाद को गलत तरीके
से लिखने की प्रस्तुत किया गया है, साथ हि फूलन देबी (दस्यु पुत्री ) कहने का जो शुरुआत किया गया है। इस तथ्यों
को आज समझने की जरूरत है और बौद्धिक स्तर से आज यह बताने का काम किया जा रहा है। देश
में आंदोलन के विगुल फुकने का काम किया तो आज वह निषाद समाज के उपजातियों ने शुरुआत
किया और उसे मुख्य धारा में न बता कर उसे हिन भावना से उसके इतिहास को नाकरने का काम
किया गया। आज निषाद वाद जमीनी तैयार कर रहा है। जय निषाद -- लेखक –बलराम बिन्द
bahut achcha
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