नारी को प्रकृति उसी प्रक्रिया
से पैदा करती है, जिस
प्रक्रिया से पुरुष को जन्म देती है। उतनी ही संभावनाशील रखकर प्रकृति उसे संसार में
लाती है जितनी संभावना पुरुष के साथ रखती है। तो स्वाभाविक यही है कि है। कि वह भी
पुरुष की तरह ही तन व मन की दुनिया में समर्थ हो तथा कर्म-भोग-त्याग में समान रूप से
भागीदारी हो। पर ऐसा हो नहीं पाता,कारण
है दोषपूर्ण सामाजिक संरचना। इसके तहत वह जन्म लेते ही भेद-भाव की शिकार हो जाती है
(आज तो जन्म पूर्व,गर्भ में ही शिकार है
) लालन-पालन,शिक्षा-दीक्षा सब में पुरुष से
हीनतर बनाकर रखी जाती है।
दुनिया में सदियों से
चल रही स्त्री-विनाश की योजनाओं का नतीजा है। प्राचीन इतिहास में नारी पारिवारिक व सामाजिक जीवन
में बहुत निचली श्रेणी पर भी रखी गई नज़र आती है, लेकिन
ज्ञान-विज्ञान की उन्नति तथा सभ्यता-संस्कृति की प्रगति से परिस्थिति में कुछ सुधार
अवश्य आया है, फिर भी अपमान, दुर्व्यवहार, अत्याचार
और शोषण की कुछ नई व आधुनिक दुष्परंपराओं और कुप्रथाओं का प्रचलन हमारी
संवेदनशीलता को खुलेआम चुनौती देने लगा है। साइंस व टेक्नॉलोजी ने कन्या-वध की
सीमित समस्या को, अल्ट्रासाउंड तकनीक द्वारा भ्रूण-लिंग की जानकारी
देकर, समाज में कन्या भ्रूण-हत्या को व्यापक बना दिया है।
दुख की बात है कि शिक्षित तथा आर्थिक स्तर पर सुखी-सम्पन्न वर्ग में यह
अतिनिन्दनीय काम अपनी जड़ें तेज़ी से फैलाता जा रहा है।
इस व्यापक समस्या को रोकने के लिए गत कुछ वर्षों से कुछ चिंता व्यक्त की जाने लगी है। साइन बोर्ड बनाने से लेकर क़ानून बनाने तक, कुछ उपाय भी किए जाते रहे हैं।
इस व्यापक समस्या को रोकने के लिए गत कुछ वर्षों से कुछ चिंता व्यक्त की जाने लगी है। साइन बोर्ड बनाने से लेकर क़ानून बनाने तक, कुछ उपाय भी किए जाते रहे हैं।
जहां तक क़ानून की बात है, विडम्बना
यह है कि अपराध तीव्र गति से आगे-आगे चलते हैं और क़ानून धिमी चाल से काफ़ी दूरी पर, पीछे-पीछे।
नारी-आन्दोलन (Feminist
Movement) भी रह-रहकर कुछ
चिंता प्रदर्शित करता रहता है,
यद्यपि वह नाइट क्लब कल्चर, सौंदर्य-प्रतियोगिता
कल्चर, कैटवाक कल्चर, पब
कल्चर, कॉल गर्ल कल्चर, वैलेन्टाइन
कल्चर आदि आधुनिकताओं (Modernism)
तथा अत्याधुनिकताओं (Ultra-modernism) की स्वतंत्रता, स्वच्छंदता, विकास
व उन्नति के लिए; मौलिक मानवाधिकार के हवाले से—जितना
अधिक जोश, तत्परता व तन्मयता दिखाता है, उसकी
तुलना में कन्या भ्रूण-हत्या को रोकने में बहुत कम तत्पर रहता है।जनसंख्या
का बोझ उठाने के डर से नवजात शिशुओं की हत्या की जाने की परंपरा कई हजार साल पुरानी
है, परंतु बेटी को हेय मानने की कढुमगजी
के चलते वहाँ भी विशेषकर कन्या शिशुओं की हत्या आम प्रचलन में रही है । कभी कभी तो
देवी देवता को प्रसन्न करने के लिए बली देकर या जल में डुबाकर कन्या शिशुओं को दुनिया
से उठाने का रिवाज देख सकते है । कन्या
भ्रूण हत्या पर कुछ तथ्यों को देखते हैं। सरकारी रिपोर्ट के मुताबिक 1981 में
0-6 साल के बच्चों का लिंग अनुपात 1000-962 था जो 1991
में घटकर 1000-945 और 2001
में 1000-927 रह
गया। केंद्रीय सांख्यिकी संगठन की रिपोर्ट के अनुसार भारत में वर्ष 2001 से
2005 के अंतराल में करीब 6,82,000 कन्या भ्रूण हत्याएं हुई हैं। इस लिहाज से देखें तो इन चार
सालों में रोजाना 1800 से 1900
कन्याओं को जन्म लेने से पहले ही दफ्न कर दिया गया।
समाज को रूढ़िवादिता में जीने की सही तस्वीर दिखाने के लिए सीएसओ की यह रिपोर्ट
पर्याप्त है।
भारत में लिंग अनुपात-
·
1000
/ 972 (प्रति एक हजार (१०००) पुरुषों पर स्त्रियों की संख्या)-
जनगणना, १९०१
·
1000
/ 933 (प्रति एक हजार (१०००) पुरुषों पर स्त्रियों की संख्या)-
जनगणना, २००१
इस परंपरा के वाहक
अशिक्षित व निम्न व मध्यम वर्ग ही नहीं है बल्कि उच्च व शिक्षित समाज भी है। भारत
के सबसे समृध्द राज्यों पंजाब, हरियाणा, दिल्ली और गुजरात में
लिंगानुपात सबसे कम है। २००१ की जनगणना के अनुसार एक हजार बालकों पर बालिकाओं की
संख्या पंजाब में 798, हरियाणा में 819 और गुजरात में 883 है। कुछ अन्य राज्यों ने इस
प्रवृत्ति को गंभीरता से लिया और इसे रोकने के लिए अनेक कदम उठाए जैसे गुजरात में 'डीकरी बचाओ अभियान' चलाया जा रहा है। इसी प्रकार से
अन्य राज्यों में भी योजनाएँ चलाई जा रही हैं। भारत में पिछले चार दशकों से सात
साल से कम आयु के बच्चों के लिंग अनुपात में लगातार गिरावट आ रही है। वर्ष 1981
में एक हजार बालकों पर ९६२ बालिकाएँ थी। वर्ष २००१ में यह अनुपात
घटकर ९२७ हो गया। यह इस बात का संकेत है कि हमारी आर्थिक समृध्दि और शिक्षा के
बढते स्तर का इस समस्या पर कोई प्रभाव नहीं पड रहा है। वर्तमान समय में इस समस्या
को दूर करने के लिए सामाजिक जागरूकता बढाने के लिए साथ-साथ प्रसव से पूर्व तकनीकी
जांच अधिनियम को सख्ती से लागू किए जाने की जरूरत है।
इसे रोकने के लिए महिलाओ को आगे आना होगा और सरकार को कानून को कठोरता के
साथ लागू करना होगा. पर्याप्त प्रचार -प्रसार करना होगा .लडकियों की शिक्षा पर
व्यापक ध्यान देने होंगे ताकि वे आत्मनिर्भर बन सके और यदि उनके ससुराल वाले कन्या
भ्रूण हत्या करने को कहे तो वे उसका विरोध कर सके .अंत में एक लड़की के शिक्षित
होने से पूरा समाज शिक्षित होता हैं ।
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