Wednesday, January 15, 2014

खूब पड़ लिए

                                                                                   लेखक/रचनाकार:                   
                                                                                रामप्रसाद रैकवार

!! खूब पड़ लिए !!

खूब पड़ लिए उन पाठों को .!
नहीं बचा हे समझाने को ...!!

बदल ही डालो वो पुराने चस्मे के नम्बर .!
जरुरत नहीं उन्हें लगाने को ……….....!!

छल और कपट से अब चले हे दुनियाँ .!
क्या बचा हे समझाने को …………....!!

गुलाम सी क्यों लगे हे मानसिकता सारी .!
केवल किताबी बात हे बहलाने को …......!!

हवाई ही बाते वो करते हे .!
बचा नहीं कुछ कहने को ...!!

हरे पेड़ और हरा ही मन था ......!
मुश्किल नहीं थी कुछ करने को .!!

क्यों नहीं कहते हूँ उनसा ही .!
नहीं बचा हे कुछ करने को ..!!


२१ वी सदी में हुआ हे यह हाल .!
हद हो गई कुछ करने को ……..!!

दिल से गरीब न दिमाग से अमीर हुए .!
क्या बचा हे कुछ करने को …………...!!

खुदी डिगे हो अपनी बात से .....!
अब क्या बचा हे कुछ करने को .!!

डग-मग से किसी के पैर पड़े हे .!
नहीं बचा हे कुछ करने को …..!!

स्वार्थ नहीं था मेरे अवाम में .....!
उम्मीद थी बहुत कुछ करने को .!!

खूब पड़ लिए उन पाठों को .!
नहीं बचा हे समझाने को ...!!

!! जय समाज !!

लेखक/रचनाकार: रामप्रसाद रैकवार 

दिनांक: 15.11.2013...

No comments:

Post a Comment