Saturday, January 18, 2014

बस एक क्रांति का इंतजार है

                                                                                 लेखक
                                                                     सुरेश कुमार एकलभ्य

बस एक क्रांति का इंतजार है
*******************
भावनाए सीने में मृत है
जवाला आँखों में आहत है
दिशाओं में एकाकीपन रह गया
विशाल वृक्ष झोंके में ढह गया
रिक्त सिर को पाग की दरकरार है
बस एक क्रांति का इंतजार है

बूंदें बुलबुलों में ढलकर बह गई
सारी आशाएं सपनों में रह गई
धवज लहराकर धूमिल हो गया
नायक बिना गगन सुना हो गया
लावे में शुष्कता की भरमार है
बस एक क्रांति का इंतजार है

तरंग जन्म लेकर निढाल पड़ गई
उमंग निशब्द कोने में कही सड गई
नाट्य मंचन की परवर्ती बढ़ रही
दुष्टों की टोली कल्पित कथा गढ़ रही
बेसुरों में सुरों की कैसी तकरार है
बस एक क्रांति का इन्तजार है

घर -घर में निषादवतार हो गए
फूंस के घोड़े पालनहार हो गए
रण सजा नहीं सेनापति बन रहे
झुकाकर सिर सीना अपना तन रहे
आँखे निर्लज्ज दामन तारतार है
बस एक क्रांति का इन्तजार है

साँझ ढले दिनकर पहरा छोड़ रहा
अन्धकार में दिया कहीं टिमटिमा रहा
दूर कहीं से काले साए दौड़े आते हैं
देखें, सोने देंगे या निद्रा दूर भागते हैं
रात काली है गहरा बहुत अन्धकार है
बस एक क्रांति का इन्तजार है

No comments:

Post a Comment