लेखक
घनश्याम निषाद
निषाद
राष्ट्र
निषादभूमि अथवा 'निषाद राष्ट्र' के विषय में कई महत्त्वपूर्ण तथ्य
महाभारत में आये हैं। निषाद नामक विदेशी या अनार्य जाति के यहाँ बस जाने के कारण
ही इस भू-भाग को 'निषादभूमि' या 'निषाद राष्ट्र' कहा जाता था।
'निषादभूमि गोश्रृंग पर्वतप्रवरं तथा
तरसैवाजायाद श्रीमान श्रेणिमंतं च पार्थिवम्'[1]
अर्थात "सहदेव ने गोश्रृंग को जीत कर
राणा श्रेणिमान को शीघ्र ही हरा दिया।"
प्रसंगानुसार निषाद भूमि का मत्स्य देश के
पश्चात् उल्लेख हुआ है, जिससे निषाद भूमि या निषाद
प्रदेश उत्तरी राजस्थान के परिवर्ती प्रदेश को माना जा सकता है। निषाद, जो निषाद भूमि का पर्याय हो सकता है, का महाभारत[2]
में भी उल्लेख है-
'द्वारं निषाद राष्ट्रस्य येषां दोषात्
सरस्वती, प्रविष्टा पृथिवीं वीर मा निषादा हि मां विदु:'
अर्थात "यह निषाद राष्ट्र का द्वार है।
वीर युधिष्ठिर उन निषादों के संसर्ग दोष से बचने के लिए सरस्वती नदी यहाँ पृथ्वी
के भीतर प्रविष्ट हो गई है, जिससे निषाद उसे देख न
सकें।"
उपर्युक्त उल्लेख से भी निषाद राष्ट्र की
स्थिति राजस्थान के उत्तरी भाग में सिद्ध होती है। यहीं महाभारत में उल्लिखित 'विनशन तीर्थ' स्थित था। शक क्षत्रप रुद्रदामन के
गिरनार के अभिलेख (लगभग 120 ई.) में उसके राज्य विस्तार के अंतर्गत इस प्रदेश की
गणना की गई है-
'स्ववीर्या जिंतानामानुरक्तप्रकृतीनां
मुराष्ट्र श्वभ्रभरुकच्छसिंधु सोवीर कुकुरापरांत निषादादीनाम्...'।
प्रोफेसर वुलर के मत के अनुसार निषाद राष्ट्र
राजस्थान के हिसार तथा भटनेर के इलाके में स्थित था। क्योंकि यहाँ निषाद नाम की
विदेशी या अनार्य जाति का निवास था, इसीलिए इस
प्रदेश को 'निषादभूमि' या 'निषाद राष्ट्र' कहा जाता था।
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