लेखक
राजेश
निषाद
निषाद संस्कृति के हक
निषाद ( मछुआ ) समाज
समुद्रों,
नदियों, नालों, और
तालाबों के पास रहने वाला समाज है । जिस पर उसका जन्मसिद्ध अधिकार है । लेकिन
जितने लोगों ने भारत पर पर राज्य किया सभी ने निषाद समाज का शोषण किया और उनके
समुद्रों ,नदियों, नालों और तालाबों पर
अपना आधिपत्य कायम कर लिया । जो कि सिर्फ निषाद समाज का उस पर अधिकार था| जो आज तक जारी है, निषाद समाज सबसे पहले जागरूक हुए
। सबसे पहले ज्ञान प्राप्त किया उदाहरण के लिए मानव सभ्यता कि खोज नदियों, समुद्रों के किनारे हुयी है इस खोज में निषाद समाज का पूरा का पूरा योगदान
रहा है । इसमें और किसी समाज का कोई योगदान न के बराबर है आज भी समय गवाह है कि
हमारा समाज समुद्रों और नदियों और तालाबों के पास ही रहता है| लेकिन यह समाज राज्य करने और अपना आधिपत्य कायाम करने में क्यों असफल होता
गया इस पर गहन अध्यन करने कि जरुरत है| महर्षि वेद ब्यास जी
ने महाभारत लिख डाली, और वाल्मीकि जी ने रामायण लिख डाली,
महर्षि कश्यप का योगदान,एकलव्य ने बिना गुरु
की शिक्षा लिए धनुर्धारी बन गया जिसे द्रोण जैसे, महाकपटी,
महाछली, ने आगे नहीं बढ़ने दिया| लेकिन आपको बताता चलूँ कि आज धनुष चलाने कि जो शिक्षा दी जाती है वह एकलव्य
कि इजात कि हुयी विद्या है अंगूठा काटने के बाद से एकलव्य ऐसे ही धनुष चलाता था
जैसे आज चलायी जाती है| तो भारत सरकार के सामने यह मांग रखता
हूँ कि द्रोण पुरष्कार बंद करके एकलव्य पुरस्कार योजना चलाये| सबसे बड़ा तो वही हुआ जिसने बिना किसी के बताये हुए शिक्षा प्राप्त कर ली ।
द्रोण पुरष्कार देना निषाद समाज का अपमान करना है । हमारे पुश्तैनी धंधों को बंद
कर दिया गया, और हमसे हमारा अधिकार छीन लिया गया और हम
चुपचाप सिर्फ देखते रह गए कुछ नहीं कर पाये । हमारे अधिकार छीन लिए गए| हमें भुकमरी के कगार पर छोड़ दिया गया हम कुछ नहीं कर पाये । महारजा गुह्य
राज निषाद श्री रामचंद्र जी के साथ मित्रता पूरवक अपने राज्य पर शासन करते रहे ।
आज भी उनका राजमहल श्रृंगवेरपुर में मैजूद है जो इस बात का परिचायक है हमने भी
राज्य किया लेकिन बाकी लोगों से हम पिछड़ते गए सायद उसका सबसे बड़ा कारण हमारे समाज
द्वारा दूसरे समाज के लोगों को पूरा मान सम्मान देना ही रहा हम किसी समाज के प्रति
कभी उतने कठोर नहीं हुए जितना कि होना चाहिए था| हमने किसी
का हक़ नहीं छीना । लेकिन दूसरों ने हमारा हक़ छीन लिया । उदहारण के तौर पर मैं आपको
बताना चाहता हुँ कि जब श्री कृष्ण ( जिसको लोग भगवान् मानते हैं ) और बलराम जरासंध
से युद्ध हारकर अपनी जान बचाकर भाग रहे थे तब राम मित्र गुह्य राज निषाद के पुत्र
महाराजा वीर एकलव्य ने कृष्ण और बलराम को सरण प्रदान किया था और अपने राज्य का कुछ
भूभाग दान में देकर रहने का आश्रय प्रदान किया था| जो कि एक
मित्र राजा दूसरे मित्र राजा के प्रति करना करता है । लेकिन उसी कृष्ण ने एकलव्य
का बध कर दिया| आज नदियों पर पुल बन गए लेकिन उसका ठेका हमको
नहीं मिलता है| हमसे कहा जाता है कि आप के पास पुल को ठेका
पर लेने और उसकी वसूली करेने का अनुभव आपके पास है क्या| मैं
सरकारों से पूंछना चाहता हूँ कि क्या कोई सारा अनुभव अपनी माँ के पेट से सीख कर
आता है क्या| जब हमें मौक़ा मिलेगा तभी तो हमें अनुभव प्राप्त
होगा| बहन फूलन का बलिदान समाज कभी भुला नहीं पायेगा । तो
निषादवंशीय बंधुओं से मेरा अनुरोध है कि एकजुट होइए, शिक्षित
बनिए, संगठित होइए और अपना अधिकार लेकर रहिये| पुरे जल भूभाग पर हमारा ही जन्मसिद्ध अधिकार है| इतिहास
गवाह है| समय गवाह है| अब हमें अपनी
सरकार बनानी पड़ेगी
तभी निषाद समाज का हक़
उनको प्राप्त हो सकेगा| किसी कि नहीं सुनेंगे अपनी
सबको सुनाएंगे इस अपने भारत देश पर अब निषादों का राज चलाएंगे ।
जय भारत , जय निषाद , वन्देमातरम, भारत
मांता कि जय
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