लेखक / रचनाकार :
रामप्रसाद रैकवार …
!! एक
संगत !!
संगत से गुण होत हे .!
संगत से गुण जाए ..!!
जेसी संगति कीजिए .!
वेसे ही गुण पाए .....!!
एक थी दही कि बूंद ही .!
दे थी उसमे मिलाए ...!!
अभिमान गया फिर दूध का .!
दूध सारा दही हो जाए ........!!
कोन कहाँ किस भेष में ......!
मुर्ख / विद्धवान मिल जाए .!!
यह तो कर्मो के खेल हे .!
सुनलो मेरे भाए ........!!
संगत से गुण होत हे .!
संगत से गुण जाए ..!!
!! जय समाज !!\
संगत से गुण होत हे .!
संगत से गुण जाए ..!!
जेसी संगति कीजिए .!
वेसे ही गुण पाए .....!!
एक थी दही कि बूंद ही .!
दे थी उसमे मिलाए ...!!
अभिमान गया फिर दूध का .!
दूध सारा दही हो जाए ........!!
कोन कहाँ किस भेष में ......!
मुर्ख / विद्धवान मिल जाए .!!
यह तो कर्मो के खेल हे .!
सुनलो मेरे भाए ........!!
संगत से गुण होत हे .!
संगत से गुण जाए ..!!
!! जय समाज !!\
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