Wednesday, January 15, 2014

कोरी गप्प हे भाई

                                                                                   लेखक/रचनाकार:                   
                                                                                रामप्रसाद रैकवार

!! कोरी गप्प हे भाई !!

!! इतिहास की एक झलक !!

सन 1734 को अहमद शाह अब्दाली ने भारत के ऊपर और यहाँ की रियासतों के राजाओं के ऊपर (अटेक ) हमला किया था,लेकिन उसके लगातार हमले विफल होने के कारण इस बाहरी मुग़ल शासक ने जो सुना था की भारत देश सोने की चिड़िया हे और इस देश में बेसुमार दौलत हे उसके सूत्रों में ...

ऐसा कहा जाता था की कुछ अपने देश के लोग भी इस षड्यंत्र और हमले कराने में पीछे से शामिल थे ! जबकी 16 बारी हमले चिंता का विषय था नाकाम हो चुके थे,और इस बाहरी मुग़ल शासक को पूरी तरह यकीं हो गया की सामने से लड़ाई नहीं जीती जा सकती तो तब उसने अपने ही सेना के विश्वसनीय और विश्वास पात्र सेना के कुछ लोगो जिम्मेदारी सोपीं की ऐसा कुछ किया जाए जिससे यहाँ के रियासतों के राजाओं के हरा कर गुलाम बनाया जा सके और इस देश की बेसुमार दौलत को लुटा जा सके ...?

इस बाहरी मुग़ल सेना के सिपाईयों को जिम्मेदारी दी गई की भारत की इस रियासत में कोन जय चंद का काम करेगा सो ढूंडते -2 उन्हें एक कमजोरी भी मिल गई,इसी देश में और इसी धरती पर इस व्यक्ति ने चंद सिक्को और अपने झूटे अभिमान की खातिर खाली अहम् की ही सोची देश और देश के 

अवाम की नहीं उस जिद्दी इंसान ने जो इसी देश और उसी रियासत का नागरिक था,वो साड़ी कमजोरी बता ही दी वो थी,की यहाँ के राजा जीत की ख़ुशी में करते क्या थे,उसने उन बाहरी सेना के सिपाईयों को सारा राज बता दिया की रात को जीत की ख़ुशी में यहाँ के राजा खूब ढोल नतासे बजाते और सांकृतिक कार्येक्रम करते हे जिसमे नाँच गाने के साथ शराब भी उन सभी सिपाइयोन को परोसी जाती हे क्युकी ख़ुशी के माहोल में सब अपनी शुद्ध बुद्ध खो बैठते थे और इतने शराब में रजा सहित सब मस्त हो जाते थे की उस समय कोई भी अनुशासन में नहीं रहता था ...?

शराब की मस्ती में सारे सिपाई और पूरी सेना और मुख्य रूप से देश के राजा बेपरवाह हो जाते थे किसी को कुछ होश नहीं रहता था की कहा तलवार पड़ी हे और कहाँ भालें और कहाँ तोपों के गोले उस समय सब लापरवाह होकर उदार उधर पढकर सो जाते थे ...?

जिसकी वजह से कोई भी अगर उस समय पर जो भी बाहरी हमलावर अगर सही रणनिति से इन रियासतों पर हमला करेगा निश्चित वो कामयाब होगा ...? क्युकी सभी अपने मद और जीत की ख़ुशी में चूर होंगे की कोई हमारा कुछ नहीं बिगाड़ सकता 

लेकिन जब भी दुश्मन के हाथ में कमजोरी हाँथ में लग जाए तब तो भगवान् ही मालिक होता हे, इस कमजोरी को उन बाहरी सिपाइयों ने अपने लिए वरदान समझा और उसपर अम्ल भी किया और जीत भी लिया भारत की रियासतों को धीरे- धीरे बिगेर किसी विरोध के,जो सत्रवी बार जीत भी गया था ...?

समझने के लिए इशारा ही काफी हे ...? की एक ही जय चंद काफी हे इंसाने गुलिस्ता क्या होगा हर काठ पे उल्लू बेठा कुछ सोचो तो तब क्या होगा ...? इसलिए इसी देश का इतिहास गवा हे और वोही देश हे और भारत की धरती भी की हमें सदेव सचेत रहना और माहोल के मुताबिक़ चलना चाहिए ...? 

नोट: अगर यह कोरी गप्प और इसके लिखे किसी भी शब्द से किसी को बुरी लगे तो में क्षमा प्रार्थी भी हूँ ...!

जय हिन्द ...जय समाज ... जय भारत 

लेखक/रचनाकार: रामप्रसाद रैकवार ..

चश्मे का नम्बर बड गया

                                                                                   लेखक/रचनाकार:                   
                                                                                रामप्रसाद रैकवार
!! चश्मे का नम्बर बड गया !!

धुल उडती रोज ही सड़क पर .!
समय क्यों बदल गया .......!!

अच्छा मेरा चश्मा था लेकिन .!
चश्मे का नम्बर बदल गया ..!!

उन धूलों ने ही दी तकलीफ सी .!
मोसम लगे क्यों फिसल गया .!!

अभी तो मोसम की आँधियाँ सी हे .!
तूफ़ान का मोसम ही बन गया .....!!

न दिखे हे क्यों चश्मे से यह मोसम .!
दिखते-दिखाते वो समय गया .......!!

उम्र हो गई जो प्रकितिक ने दी हे .!
जो सच्चा हे वो दिख ही गया .....!!

रोज ही पूछूँ अपने डाक्टर से .....!
मेरे चश्मे का नम्बर बदल गया .!!

रोज ही धुल साफ़ करूँ चश्मे की .!
डाक्टर जो मेरा कह ही गया .....!!

रख न पाया स्थिर आँखों के नम्बर .!
चश्मे का नम्बर बदल गया .........!!

पर उड़ाऊँ रोज ही सतरंगी रोज पतंगे .!
मोसम से मोका जब मिल ही गया ...!!

यह तो तजुर्बा था बचपन से .......!
मिला था मोका जो मिल ही गया .!!

पतंग हे केवल आकाश में मेरी ..!
पर चश्मे का नम्बर बदल गया .!! 

धुल उडती रोज ही सड़क पर .!
समय क्यों बदल गया .......!!

जय हिन्द ..जय समाज ..जय भारत 

लेखक/रचनाकार:रामप्रसाद रैकवार ...

दिनांक: 26.10.2013...


खूब रहे हे दौड़ धुप में

                                                                                   लेखक/रचनाकार:                   
                                                                                रामप्रसाद रैकवार

!! खूब रहे हे दौड़ धुप में !!

खूब रहे हे दौड़ धुप में ...!
चेन नहीं हे जमाने को .!!

हम बताये दो-दो चार होते हे .!
वो तीन बताये जामाने को ...!!

फुर्सत से ही यह क्षण हे मिलते .!
फुर्सत नहीं खिसियाने को …….!!

दौड़ भाग से मिले चेन न ..!
समझ लो अब जमाने को .!!

आँतरिक्षक नहीं हे भारत देश हे .!
रंगे से दिखे जमाने को ………..!!

सतरंगी हे यहाँ का मोसम .!
क्या करो इस जमाने को …!!

सर्द हवा हे पहनो स्वेअटर .!
दोष नहीं फिर मौसम को .!!

हूँ अपना कहूं में क्यों सच्ची .!
समझ लो इस जमाने को …!!

पहले अण्डे टेड़े थे और चूझे हे नए जामाने को ....!
चट करदेंगे वो सारा दाना खूब नचाएँ जमाने को .!!

घुस ही जायेंगे वो ऐन मोके पे पर. !
दोष नहीं देना जमाने को …… ....!!

दड़वे में वो दिखे शाँत से ..!
उदंड करे वो जमानो को ..!!


स्वर्ग सी धरती थी भारत कि .!
नरक मिली हे जमाने को .... !!

मोके पर सुई ही काम हे करती .!
तलवार न दो इस जमाने को ..!!

खूब रहे हे दौड़ धुप में ...!
चेन नहीं हे जमाने को .!!

!! जय समाज !!

लेखक/रचनाकार: रामप्रसाद रैकवार

दिनांक: 13.11.2013 ..

क्यों झूठा में हो गया

                                                                                   लेखक/रचनाकार:                   
                                                                                रामप्रसाद रैकवार


!! क्यों झूठा में हो गया !!

क्यों झूठा में बेकार ही हो गया .!
सबसे आगे में निकल गया ...!!

भारत कि में भीड़ खो गया .!
लहर केवल अब झूठों कि .!!

मुखियाँ झूठो का जो बन गया .!
आखों से भी बेकार हो गया। ..!!

चतुर खिलाड़ी हूँ दुनियाँ का .!
झूठो का व्यापार ही हो गया .!!



झूठ ढेर पर क्यों बेठा हूँ .!
जब बेड़ा गर्क हो गया ...!!

क्यों इंतराऊ अपने झूट पे रोज ही .!
क्यों में अच्छा सौदागर हो गया। ..!!

सच्चो कि में बली चढ़ाऊँ ....!
चतुर खिलाड़ी जो बन गया .!!

क्यों डरूँ में किसी खुदा से .....!
झूठ का जो सिरमोहर हो गया .!!

कला झूठ कि सीखी ऐसी ......!
दिखे हे ऐसा व्यापार हो गया .!!

मिलूँ और दिखूँ चेहरा ख़ुशी का .!
झूट से लुटा सा क्यों हो गया। ..!!

सब बेले पुरियाँ मेरे आगे ..........!
झूठ का जब में खिलाड़ी हो गया .!!

क्यों झूठा में बेकार ही हो गया ..!
सबसे आगे में निकल गया ....!!

!! जय समाज !!

लेखक/रचनाकार: रामप्रसाद रैकवार  

दिनांक: 11.11.2013 ...

खूब पड़ लिए

                                                                                   लेखक/रचनाकार:                   
                                                                                रामप्रसाद रैकवार

!! खूब पड़ लिए !!

खूब पड़ लिए उन पाठों को .!
नहीं बचा हे समझाने को ...!!

बदल ही डालो वो पुराने चस्मे के नम्बर .!
जरुरत नहीं उन्हें लगाने को ……….....!!

छल और कपट से अब चले हे दुनियाँ .!
क्या बचा हे समझाने को …………....!!

गुलाम सी क्यों लगे हे मानसिकता सारी .!
केवल किताबी बात हे बहलाने को …......!!

हवाई ही बाते वो करते हे .!
बचा नहीं कुछ कहने को ...!!

हरे पेड़ और हरा ही मन था ......!
मुश्किल नहीं थी कुछ करने को .!!

क्यों नहीं कहते हूँ उनसा ही .!
नहीं बचा हे कुछ करने को ..!!


२१ वी सदी में हुआ हे यह हाल .!
हद हो गई कुछ करने को ……..!!

दिल से गरीब न दिमाग से अमीर हुए .!
क्या बचा हे कुछ करने को …………...!!

खुदी डिगे हो अपनी बात से .....!
अब क्या बचा हे कुछ करने को .!!

डग-मग से किसी के पैर पड़े हे .!
नहीं बचा हे कुछ करने को …..!!

स्वार्थ नहीं था मेरे अवाम में .....!
उम्मीद थी बहुत कुछ करने को .!!

खूब पड़ लिए उन पाठों को .!
नहीं बचा हे समझाने को ...!!

!! जय समाज !!

लेखक/रचनाकार: रामप्रसाद रैकवार 

दिनांक: 15.11.2013...

Tuesday, January 14, 2014

रंग - रंग के फूल खिलें हे

                                                                             लेखक/रचनाकार:
                                                                           रामप्रसाद रैकवार

!! रंग - रंग के फूल खिलें हे !!

रंग - रंग के फूल खिलें हे .!
रोज दिखे इन राहों में .....!!

तोड़ ही ले उसको जो माली .!
दिखे किसी के छाओं में ....!!

एक दिन में वो सब मुर्झाए .!
फेके उसे कपालों में ..........!!

एक दिन कि उसकी महक हे .!
रोज दिखे इन राहों में .........!!

जीवन इनका केवल महकना .!
खुशबु दे सवालों में .………...!!

स्वभाव बदल इसकी खुशबु .!
खो जाए ख्यालों में .……….!!

मतलब भी हे इनके रंगों के .!
पूछें सवाल भी सवालों में …!!

फूलों में रहष्य ख़ुशी का .!
पर पूछे वो इन राहों में ..!!

कभी चढ़े भगवान के ऊपर .!
कभी चढ़े विद्धवानो में ......!!

मकसद और मतलब दोनों बताएँ .!
मिले फूल जब राहों में ..............!!

मौसम से इन फूलों का मतलब .!
कभी गंगा की धारों में ............!!


कभी तो समझो प्रकितिक के राज को .!
खुदी बताए वो सवालों में ................!!

रंग - रंग के फूल खिलें हे .!
रोज दिखे इन राहों में .....!!

!! जय समाज !!

लेखक/रचनाकार: रामप्रसाद रैकवार  

दिनांक: 12.01.2014 ...

आँखों पर पट्टी बांध कर खाई में कूद जाते है

                                                                             लेखक/रचनाकार:
                                                                           रामप्रसाद रैकवार

चलो मोदी को नहीं लाते हैं.....|
कोई और विकल्प बताते है.....||
चलो नेहरु को ले आते हैं, 
एक और पाकिस्तान बनाते हैं.....|

हम खून पसीना बहा कर आयकर चुकायेंगे, 
और वो अपना कोट विदेश में धुल्वायंगे......||

चलो हाथी पर भरोसा जताते हैं, जो लडते हैं धर्म के नाम पर.....|
उन्हें जात के नाम पर लड़वाते हैं......||

चलो साइकल में हवा भरवाते हैं, शहर में जंगल राज चलवाते हैं.....|
अनपढ़ से आइयाशी और पढ़े लिखो से रिक्शा चलवाते है.....||

या सर्वोतम विकल्प फिर से कांग्रेस को लाते हैं, 
बच्चों से राहुल
की जीवनी पढवाते हैं....|
आँखों पर पट्टी बांध कर खाई में कूद जाते है.......||
आज समझ आया क्यूँ अक्सर विदेशी, कुत्तों और भारतीयों पर रोक लगाते
हैं.....|
क्यूंकि कुत्ते घी, और हम शांति-सत्य-सकून और इज्ज़त हजम नहीं कर पाते हैं....||


एक आजम खां जो भारत माँ को डायन कहता है.....|
एक दिग्विजय जो हर औरत को टंच समझते हैं.....||
किसी को भी सत्ता में लाते हैं, बाऊ बाऊ चिलाते है....|
नहीं मोदी को नहीं लाते हैं, कोई और विकल्प बताते है.....||

जय हिंद, जय भारत, वंदेमातरम.

कृपया एक सच्चे भारतीय के नाते इस पोस्ट को अपने मित्र/ परिवार / सहकर्मियों संग शेयर करे।
अब हमें नींद से जगना होगा।
अब हमें लड़ना होगा।
किस बात पर गर्व करे.....??
लाखों करोड़ के घोटालों पर...?
85 करोड़ भूखे गरीबों पर...?
62 प्रतिशत कुपोषित इंसानों पर...?
या क़र्ज़ से मरते किसानों पर...?

किस बात पर गर्व करे.....??
जवानों की सर कटी लाशों पर...?
सरकार में बैठे अय्याशों पर....?
स्विस बैंकों के राज़ पर...?
प्रदर्शनकारियोंपर होते लाठीचार्ज पर...?

किस बात पर गर्व करे......??
राज करते कुछ परिवारों पर....?
उनकी लम्बी इम्पोर्टेड कारों पर....?
रोज़ हो रहे बलात्कारों पर...?
या भारत विरोधी नारों पर...?

किस बात पर गर्व करे......??
महंगे होते आहार पर....?
अन्याय की हाहाकार पर....?
बढ़ रहे नक्सलवाद पर....?
या देश तोड़ते आतंकवाद पर....?

किस बात पर गर्व करे.......??
जवानों की खाली बंदूकों पर....?
सुरक्षा पर होती चूकों पर....?
पेंशन पर मिलते धक्कों पर.....?
या IPL के चौकों-छक्कों पर....?

किस बात पर गर्व करे......??
किसानों से छिनती ज़मीनों पर....?
युवाओं की खिसकती जीनों पर....?
संस्कृति पर होते रेलों पर.....?
या क्रिकेट-कॉमनवेलथ खेलों पर....?

किस बात पर गर्व करे......??
साढ़े 900 के सिलेंडर पर...?
दुश्मन के आगे होते सरेंडर पर....?
इस झूठी शान पर....?
या 'इंडियन' होने की पहचान पर....?
किस बात पर गर्व करे.....??
किस बात पर गर्व करे.....?
❓❓
3
करोड की शो करके आमिर नैशनल हीरो बने तो देश
आगे कैसे बढे . .

.
जब विदेशी Status Symbol
हो और स्वदेशी cheap लगे तो देश आगे कैसे बढे . .


जब नहाने के बाद Deo लगाना जरुरी और भगवान के
सामने सर झुकना Boring लगे तो देश आगे 
कैसे बढे . . 


जब Dirty Picture को नैशनल अवार्ड मिले
और पान सिंह तोमर फ्लॉप रहे तो देश आगे कैसे बढे . .


जब राजेश खन्ना के मृत्यु पर मीडिया विधवा अलाप करे
और क्रांतिकारियों के शहादत दिवस पर एक दीपक भी न
जले तो देश आगे 
कैसे बढे . . 


जब देश का युवा Malls
में जेब कटवाए और बाहर ठेले पे मोल भाव करे तो देश
आगे कैसे बढे . . 


जब युवाओं को हिंदी बोलने में घिन और देश का प्रधानमन्त्री अंग्रेजी को सर्वश्रेष्ठ
भाषा कहे तो देश आगे 
कैसे बढे . . 


गर्लफ्रेंड के लिए
कविताएं लिखने वाला युवा अगर देश की स्थिति पे मौन रहे तो देश 
आगे कैसे बढे . . 


अनगिनत ग्रंथो के बाद
भी अगर हिंदू चरित्र पतन करे तो देश आगे कैसे बढे . .


धर्म निरपेक्षता के नाम पर किसी को ठगा जाए 
और हम शांत रहे तो देश
आगे कैसे बढे . . 


इन लाइनों को पढकर
कुछ एहसास ना हो और कांग्रेस के राज मे रोज 3
0हजार
गाय कटे 
और आप चुप बैठे तो देश 
आगे कैसे बढ़े ...


फालतू बाते शेयर करनेवाले युवाको लाख समजाये 
फिर भी युवा शेयर न करे त देश आगे कैसे बढे .

खुदी किया हे वीरान जमी को

                                                                             लेखक/रचनाकार:
                                                                           रामप्रसाद रैकवार

!! खुदी किया हे वीरान जमी को !!

खुदी किया हे वीरान जमी को .!
दोष किसी को देते हे ...........!!

चढ़ते हे खुद के मचान पे .!
रास्ता वहीं से देखते हे ....!!

उतार के देखो लोटन चश्मा .!
खड़े और भी दिखाई देते हे .!!

बड़ी ही लम्बी लाइन लगी हे .!
क्यों हम न दिखाई भी देते हे .!!

हे यकीं हो समझदार से शक नहीं .!
फिर क्यों गलतियां करते हे .…...!!

झाँक -झाँकते खुद कि खिड़कियों से .!
क्यों न जमी पे उतरते हे ...…………!!

खुद बना दे अपने ही मजाक सा .!
अपने ही आना - कानी करते हे ..!!

वाह रे हिड्डन/डिप्लोमेसी और पॉलिसी .!
उसका भी हस्र हम देखते हे ....…………!!

क्यों हुआ समझदार अवाम हे मेरा .!
वो भी तो बागो में रहते हे ...........!!

हम भी हे उस बाग़ के माली .!
उसी जमी पर रहते हे ...……!!

खुदी सींचे हम अपने बाग़ को .!
मेहनत भी तो करते हे ..…….!!

दौड़ पढ़ो आवाज अवाम की .!
उम्मीद अवाम भी रखते हे ..!!

कुछ तो समझो मौसम को तो .!
हम भी बागों में रहते हे .........!!

हूँ अपना तो कुछ समझो बात को .!
बात भी काँटे कि कहते हे ..………!!

जिद क्यों हे जिद्दी हे अवाम भी .!
जिद में अवाम भी रहते हे ......!!

खुदी किया हे वीरान जमी को .!
दोष किसी को देते हे ...………!!

!! जय समाज !!

लेखक/रचनाकार: रामप्रसाद रैकवार  

दिनाक: 14.01.2014 ...

चलो निषादों धनुष उठा लो

                                                                                                                            
                               लेखक
                          सुरेश एकलभ्य



श्रंगवेरपुर में कौन आया है अधम
काटे जायेंगे उन दुष्टों के कदम
चलो निषादों धनुष उठा लो
तरकश में पैने बाण सजा लो
ढाल तलवारों को अंग लगाओ
बरछे भालों को श्रींगार कराओ
वीर हो वीरो का अवतार धरो
मार अरि को धरा से दूर करो
समय न पावे कर दो बेदम
श्रंगवेरपुर में कौन आया है अधम

किशोर नारी सब जाग लिए
बालक वृद्ध शस्त्र धर भाग लिए
गुह संग पंक्तिबद खड़े हो गए
जोहर दिखाने को भाव कड़े हो गए
धरा हर्दय गर्व से भरने लगा
संगति देने पक्षी कलरव करने लगा
अम्बर भी देखता था हकदम
श्रंगवेरपुर में कौन आया है अधम

दसों दिशा रणभेरी बजने लगी
छनों में निषाद सेना सजने लगी
अम्बर भय्क्रांत हो ड़ोल गया
युदरस भाव कण कण में घोल गया
श्रंगवेरपुर पर बढ़ते पाँव ठहर गए
देख निषाद सवरूप प्राण सहम गए
सात सुरों से ऊँचा था रिद्धम
श्रंगवेरपुर में कौन आया है अधम

वीरों का दल जयकार करने लगा
कर्कशता से रिक्त गगन हिलने लगा
टश कदम कम्पित हो डगमगा गए
देख काल म्रत्यु का भय जगा गए
वो रूद्र रूप थे महाबलिदानी थे
जो नत न हो ऐसे अभिमानी थे
सहस्र में दिखते थे कई पदम्
श्रंगवेरपुर में कौन आया है अधम

निषाद वंशजों की यह सेना अब नहीं
वीरों की गाथा धर्म ग्रंथो में क्यों नहीं
वे धुंरधर महारथी अश्प्रश्य हो गए
देख कुतिस्तों का प्रलाप माधो सो गए
रन बने हैं रणभेरी वाला कहाँ रहा
वायु तीर्व है सुना है वायु खा रहा
पापी वे नहीं हम ही हैं नराधम
श्रंगवेरपुर में अब रोज आता है अधम
कोई नहीं काटता उसके कदम, कोई नहीं काटता कदम

भुजी थी आग जली फिर क्यों हे

                                                                            लेखक/रचनाकार:
                                                                           रामप्रसाद रैकवार

!! भुजी थी आग जली फिर क्यों हे !!

भुजी थी आग जली फिर क्यों हे .!
इतना भयंकर रूप सा क्यों हे ....!!

सूखे कपास के अभी भी खेत खड़े हे .!
किनारे आग के मेड अब सा क्यों हे .!!

काँप रही हे हर वो खेती ..............!
इतना जंगल में आँतक सा क्यों हे .!!

हवा भी चली क्यों उलटी ऐसी ....!
साथ क्यों हे और आग सी क्यों हे.!!

हिली धरती उसपे क्यों आग सी .!
निशाँ न बारिश का अब क्यों हे . !!

साँय -२ करती पवन भी चंचल .!
इतना मौसम ख़राब सा क्यों हे .!!

दोस्त रहा हे मेरा ही मौसम ...!
तुरेरी सी उसकी आँखे क्यों हे .!!

आशा में हे हर खेत की आँखे .....!
बादल/बारिश का इंतजार क्यों हे .!!

अफरा-तफरी सी मची जंगल में .…!
पासविक्ता का यह खेल ही क्यों हे .!!

दुआ हे मेरी इस मौसम से ....!
छीना खेत का चेन सा क्यों हे .!!

नाँच रही आग कि ज्वाला .!
इंतगाम सा लेती क्यों हे ...!!


भुजी थी आग जली फिर क्यों हे .!
इतना भयंकर रूप सा क्यों हे ....!!

!! जय समाज !!

लेखक/रचनाकार: रामप्रसाद रैकवार  

दिनांक: 16.11.2013 ..

दरक रही फसलों की धरती

!! दरक रही फसलों की धरती !!

दरक रही फसलों कि धरती ….......................!
फसल पड़ी हे उसी धरती पर क्यों हे टकराने को .!!

हवा भी और कुछ मौसम भी ऐसा कि धरती ..!
क्यों चिंता मुस्कराने को ….……………........!!

कसक सी भी हे इस फसल के दिल में .!
बुला रही कुछ कर जाने को ..............!!

लहर रही लहराने को ..........…….!
बस खड़ी हे दिल को समझाने को .!!



दरक रही हे फसलों कि धरती .…… .!
केवल चिंता नहीं हे कुछ घबराने को .!!

दरक रही हे फसलों कि धरती .!
नहीं कुछ कर जाने को …....!!

जिसकी धरती हे गुमान से .!
धरती पे कुछ कर जाने को .!!

क्यों हे संकोच सा हे धरती से .!
प्यार अपना दिखलाने को …...!!

दरक रही फसलों कि धरती …!
नया कुछ कर जाने को ......!!

लेखक/रचनाकार: रामप्रसाद रैकवार… 

प्यार हो गया अपनों से ही

                                                                            लेखक/रचनाकार:
                                                                           रामप्रसाद रैकवार

!! प्यार हो गया अपनों से ही !!

प्यार हो गया अपनों से ही .!
दिल कि ही बाते बोल रहे .!!

कुछ आदत सी क्यों मेरी फितरत में .!
क्यों ऐसा ही झेल रहे ………….... …!!

झपक रही अब आँखें मेरी .!
आशा में हम झूल रहे ....!!

महारत दी हे कुदरत ने .!
फिर भी हम न कूद रहे .!!

सामने हे मंज़िल भी मेरे .!
फिर भी न हम ढूंढ रहे ....!!

में अवाम का और मेरे सब .!
दिल कि बाते बोल रहे …...!!



बेशर्मो कि ईस दुनिया में .!
शर्मो कि दुनियाँ ढूंढ रहे ..!!

माना खिलाडी हे वो सतरंज के .!
क्यों इतना फिर सोच रहे। ......!!

प्यार हो गया अश्को से ही .!
दिल कि ही बाते बोल रहे ..!!

नहीं हे फिर सावन का मौसम .!
फिर झूले में क्यों झूल रहे ……!!

प्यार हो गया अपनों से ही .!
दिल कि ही बाते बोल रहे ..!!

लेखक/रचनाकार: रामप्रसाद रैकवार  

दिनांक: 23.11.2013...

नहीं खतम हुए शब्दो के कोष हे

                                                                      लेखक/रचनाकार:
                                                                    रामप्रसाद रैकवार

!! नहीं खतम हुए शब्दो के कोष हे !!

कटु शब्दो से बचा बहुत हूँ .!
लय अभी तक जारी हे ..…!!

शब्द भी अब कहें मुझी से .!
वजन बहुत ही भारी हे .....!!

सोचूँ रोज क्या लिखूं अब ...!
यह मन में चिंतन जारी हे .!!

क्युकी अवाम समझदार हे मेरा .!
लिखना मेरा जारी हे ..............!!

न पसंद हे कई शब्द मुझको .!
उसपर भी अंकुश जारी हे ....!!

शब्द बना दे सिरमोहर अवाम को .!
यह भी द्धंद अभी जारी हे ...........!!

प्यार करूँ में अपने अवाम से ही .!
यह प्यार कि कोशिश जारी .......!!

ख़त्म न हो मिन्नत और मन्नत दौर भी .!
यह प्रयास यह भी जारी .....................!!

हो सपने अवाम के पूरे .....!
शब्दों कि जंग भी जारी हे ..!!

पकड़के बेठा हूँ शब्दो के कोष को .!
जिम्मेदारी भी बहुत ही भारी हे ..!!

कोशिश करूँ में रोज ही ऐसे .!
बात सभी जो प्यारी हे ......!!

सोचूँ बहुत लिखूँ जल्दी से वो आखरी पन्ना .!
पर लय अभी तक जारी हे .....................!!

प्रणाम करूँ में शब्दो रोज ही .!
शब्दो कि जंग भी जारी हे ....!!

कटु शब्दो से बचा बहुत हूँ .!
लय अभी तक जारी हे .....!!

!! जय समाज !!

लेखक/रचनाकार: रामप्रसाद रैकवार  

आगाज

                                                                  लेखक/रचनाकार
                                                                 रामप्रसाद रैकवार

!! आगाज !!

कर्ज समाज पर हे अभी भी ...!
प्यार का आगाज हे अभी भी .!!

इन्तजार हे उस बात का अभी भी .!
क्यों हर जगह वो मंजर अभी भी .!!



क्यों नहीं बनी वो गालियाँ ......!
वर्षो से इन्तजार था अभी भी ..!!

क्यों हे अकाल सा अभी भी विशाल सा .!
अभी भी अभी भी अभी भी ...!! 

!! जय समाज !!

नए वर्ष कि शुभ - कामनाएँ सहित  

लेखक/रचनाकार: रामप्रसाद रैकवार  

दिनांक: 01.01.2014 ....