लेखक/रचनाकार:
रामप्रसाद रैकवार
!! कोरी
गप्प हे भाई !!
!! इतिहास की एक झलक !!
सन 1734 को अहमद शाह अब्दाली ने भारत के ऊपर और यहाँ की रियासतों के राजाओं के ऊपर (अटेक ) हमला किया था,लेकिन उसके लगातार हमले विफल होने के कारण इस बाहरी मुग़ल शासक ने जो सुना था की भारत देश सोने की चिड़िया हे और इस देश में बेसुमार दौलत हे उसके सूत्रों में ...
ऐसा कहा जाता था की कुछ अपने देश के लोग भी इस षड्यंत्र और हमले कराने में पीछे से शामिल थे ! जबकी 16 बारी हमले चिंता का विषय था नाकाम हो चुके थे,और इस बाहरी मुग़ल शासक को पूरी तरह यकीं हो गया की सामने से लड़ाई नहीं जीती जा सकती तो तब उसने अपने ही सेना के विश्वसनीय और विश्वास पात्र सेना के कुछ लोगो जिम्मेदारी सोपीं की ऐसा कुछ किया जाए जिससे यहाँ के रियासतों के राजाओं के हरा कर गुलाम बनाया जा सके और इस देश की बेसुमार दौलत को लुटा जा सके ...?
इस बाहरी मुग़ल सेना के सिपाईयों को जिम्मेदारी दी गई की भारत की इस रियासत में कोन जय चंद का काम करेगा सो ढूंडते -2 उन्हें एक कमजोरी भी मिल गई,इसी देश में और इसी धरती पर इस व्यक्ति ने चंद सिक्को और अपने झूटे अभिमान की खातिर खाली अहम् की ही सोची देश और देश के
अवाम की नहीं उस जिद्दी इंसान ने जो इसी देश और उसी रियासत का नागरिक था,वो साड़ी कमजोरी बता ही दी वो थी,की यहाँ के राजा जीत की ख़ुशी में करते क्या थे,उसने उन बाहरी सेना के सिपाईयों को सारा राज बता दिया की रात को जीत की ख़ुशी में यहाँ के राजा खूब ढोल नतासे बजाते और सांकृतिक कार्येक्रम करते हे जिसमे नाँच गाने के साथ शराब भी उन सभी सिपाइयोन को परोसी जाती हे क्युकी ख़ुशी के माहोल में सब अपनी शुद्ध बुद्ध खो बैठते थे और इतने शराब में रजा सहित सब मस्त हो जाते थे की उस समय कोई भी अनुशासन में नहीं रहता था ...?
शराब की मस्ती में सारे सिपाई और पूरी सेना और मुख्य रूप से देश के राजा बेपरवाह हो जाते थे किसी को कुछ होश नहीं रहता था की कहा तलवार पड़ी हे और कहाँ भालें और कहाँ तोपों के गोले उस समय सब लापरवाह होकर उदार उधर पढकर सो जाते थे ...?
जिसकी वजह से कोई भी अगर उस समय पर जो भी बाहरी हमलावर अगर सही रणनिति से इन रियासतों पर हमला करेगा निश्चित वो कामयाब होगा ...? क्युकी सभी अपने मद और जीत की ख़ुशी में चूर होंगे की कोई हमारा कुछ नहीं बिगाड़ सकता
लेकिन जब भी दुश्मन के हाथ में कमजोरी हाँथ में लग जाए तब तो भगवान् ही मालिक होता हे, इस कमजोरी को उन बाहरी सिपाइयों ने अपने लिए वरदान समझा और उसपर अम्ल भी किया और जीत भी लिया भारत की रियासतों को धीरे- धीरे बिगेर किसी विरोध के,जो सत्रवी बार जीत भी गया था ...?
समझने के लिए इशारा ही काफी हे ...? की एक ही जय चंद काफी हे इंसाने गुलिस्ता क्या होगा हर काठ पे उल्लू बेठा कुछ सोचो तो तब क्या होगा ...? इसलिए इसी देश का इतिहास गवा हे और वोही देश हे और भारत की धरती भी की हमें सदेव सचेत रहना और माहोल के मुताबिक़ चलना चाहिए ...?
नोट: अगर यह कोरी गप्प और इसके लिखे किसी भी शब्द से किसी को बुरी लगे तो में क्षमा प्रार्थी भी हूँ ...!
जय हिन्द ...जय समाज ... जय भारत
लेखक/रचनाकार: रामप्रसाद रैकवार ..
!! इतिहास की एक झलक !!
सन 1734 को अहमद शाह अब्दाली ने भारत के ऊपर और यहाँ की रियासतों के राजाओं के ऊपर (अटेक ) हमला किया था,लेकिन उसके लगातार हमले विफल होने के कारण इस बाहरी मुग़ल शासक ने जो सुना था की भारत देश सोने की चिड़िया हे और इस देश में बेसुमार दौलत हे उसके सूत्रों में ...
ऐसा कहा जाता था की कुछ अपने देश के लोग भी इस षड्यंत्र और हमले कराने में पीछे से शामिल थे ! जबकी 16 बारी हमले चिंता का विषय था नाकाम हो चुके थे,और इस बाहरी मुग़ल शासक को पूरी तरह यकीं हो गया की सामने से लड़ाई नहीं जीती जा सकती तो तब उसने अपने ही सेना के विश्वसनीय और विश्वास पात्र सेना के कुछ लोगो जिम्मेदारी सोपीं की ऐसा कुछ किया जाए जिससे यहाँ के रियासतों के राजाओं के हरा कर गुलाम बनाया जा सके और इस देश की बेसुमार दौलत को लुटा जा सके ...?
इस बाहरी मुग़ल सेना के सिपाईयों को जिम्मेदारी दी गई की भारत की इस रियासत में कोन जय चंद का काम करेगा सो ढूंडते -2 उन्हें एक कमजोरी भी मिल गई,इसी देश में और इसी धरती पर इस व्यक्ति ने चंद सिक्को और अपने झूटे अभिमान की खातिर खाली अहम् की ही सोची देश और देश के
अवाम की नहीं उस जिद्दी इंसान ने जो इसी देश और उसी रियासत का नागरिक था,वो साड़ी कमजोरी बता ही दी वो थी,की यहाँ के राजा जीत की ख़ुशी में करते क्या थे,उसने उन बाहरी सेना के सिपाईयों को सारा राज बता दिया की रात को जीत की ख़ुशी में यहाँ के राजा खूब ढोल नतासे बजाते और सांकृतिक कार्येक्रम करते हे जिसमे नाँच गाने के साथ शराब भी उन सभी सिपाइयोन को परोसी जाती हे क्युकी ख़ुशी के माहोल में सब अपनी शुद्ध बुद्ध खो बैठते थे और इतने शराब में रजा सहित सब मस्त हो जाते थे की उस समय कोई भी अनुशासन में नहीं रहता था ...?
शराब की मस्ती में सारे सिपाई और पूरी सेना और मुख्य रूप से देश के राजा बेपरवाह हो जाते थे किसी को कुछ होश नहीं रहता था की कहा तलवार पड़ी हे और कहाँ भालें और कहाँ तोपों के गोले उस समय सब लापरवाह होकर उदार उधर पढकर सो जाते थे ...?
जिसकी वजह से कोई भी अगर उस समय पर जो भी बाहरी हमलावर अगर सही रणनिति से इन रियासतों पर हमला करेगा निश्चित वो कामयाब होगा ...? क्युकी सभी अपने मद और जीत की ख़ुशी में चूर होंगे की कोई हमारा कुछ नहीं बिगाड़ सकता
लेकिन जब भी दुश्मन के हाथ में कमजोरी हाँथ में लग जाए तब तो भगवान् ही मालिक होता हे, इस कमजोरी को उन बाहरी सिपाइयों ने अपने लिए वरदान समझा और उसपर अम्ल भी किया और जीत भी लिया भारत की रियासतों को धीरे- धीरे बिगेर किसी विरोध के,जो सत्रवी बार जीत भी गया था ...?
समझने के लिए इशारा ही काफी हे ...? की एक ही जय चंद काफी हे इंसाने गुलिस्ता क्या होगा हर काठ पे उल्लू बेठा कुछ सोचो तो तब क्या होगा ...? इसलिए इसी देश का इतिहास गवा हे और वोही देश हे और भारत की धरती भी की हमें सदेव सचेत रहना और माहोल के मुताबिक़ चलना चाहिए ...?
नोट: अगर यह कोरी गप्प और इसके लिखे किसी भी शब्द से किसी को बुरी लगे तो में क्षमा प्रार्थी भी हूँ ...!
जय हिन्द ...जय समाज ... जय भारत
लेखक/रचनाकार: रामप्रसाद रैकवार ..