Monday, April 21, 2014

राष्ट्रीय मछुआरा आयोग

                                                                                        लेखक                                                           
                                                                                        रामप्रसाद रैकवार
अगर कोई भी पार्टी मछुआरा समाज का भला करना चाहती हे तो वो सर्व प्रथम दिखना चाहिए : - (१) स्वतंत्र राष्ट्रीय मछुआरा आयोग … ?
(२ ) जो मछुआ समाज करीब २० करोड़ की आबादी के आसपास हे राष्ट्रीय स्तर पर निषाद - कश्यप की उप १२७ जातियों को केवल एक नाम से जाना जाए … ? भले ही पर्यायवाची शब्दों में वो निषाद - कश्यप की १२७ उप जातियां हो … ? इसके लिए समाज का सरकारी सर्वे समाज द्वारा ही हो, जो सरकारी प्रतिनिधि के तोर पर काम करे और सर्वे करे राष्ट्रीय मछुआरा आयोग के गठन होने पर … ? इन सभी को रिज़र्वेशन की एक ही सूचि में - सूचीबद्ध किया जाए … ?
( ३ ) पूरे भारत में सूचीबद् करके भारत के गजट बुक ( किताब में ) इन सभी जातियों को निषादों - कश्यप जातियों की डाला जाए इनको एक ही सरकारी आदेश से सर्कुलेट सभी राज्यों में किया जाए ताकि सरकारी और सामाजिक टीपा - टिप्पणी से साफ़ बचा जाए और पुरे भारत में इस समाज के साथ हो रहे सौतेले व्यवहार से इनको निजात मिल सके … ?

( ४ ) निषाद - कश्यप की १२७ उप जातियों के लिए समाज को सरकारी मान्यता हेतु शीग्र अति शीग्र सरकारी आदेश जारी हो सरकारी एक शाखा के राज्य- राज्य की राजधानी से राष्ट्रीय स्तर के सभी राज्यों समेत दिल्ली की राजधानी तक पर … ?
जय कश्यप - जय निषाद - जय कोली/कोहली - जय रैकवार - जय भोई - जय माँझी - जय मल्लाह / केवट - जय साहनी - जय बिंद - बाथम/ तुरैहा /तोमर गुहा - गोहिल और सभी - समन्धित इत्यादि - इत्यादि

जय समाज - जय निषाद - जय कश्यप - जय भारत

दिनांक : 21.04.2014 ...

Sunday, March 30, 2014

सनद स्नेह संदेश

                                                            लेखक / रचनाकार : रामप्रसाद रैकवार
                                                                  दिनांक : ३०.०३.२०१४

!! सनद स्नेह संदेश !!
!! क्या किया हे और नहीं किसी ने !!
क्या किया हे और नहीं किसी ने .!
उन्होंने बात अपनी ही बनाई हे ..!!
केवल झूठे सपने दिखाकर ..!
तश्वीर गाँव - गाँव बनाई हे .!!
वो भी हे इंसान जमी के .!
नहीं सही वो भाई हे ......!!
नहीं बनोगे अपने दादी जेसे .!
कुछ देता नहीं दिखाई हे .....!!
केवल घर आकर-खाना खाकर .!
जुगत ही अपनी लगाई हे .......!!
सीधा - साधा अवाम हे मेरा .!
नीति सही अपनाई हे ........!!
में भी उस अवाम का वंशज ...!
घर - मीनारे जिसने बनाई हे .!!
जहाँ नवाजे सिस सभी ने .!
वो भी आपका भाई ........!!
आपातकाल कि वो काली रातें ..!
उनको समझ तभी थी आई हे .!!
याद न आये किसी को वो काली मंदिर .!
फिर से नीवं जहाँ किसी ने बनाई हे ....!!
क्या किया हे और नहीं किसी ने .!
उन्होंने बात अपनी ही बनाई हे .!!
!! जय समाज !!
लेखक / रचनाकार : रामप्रसाद रैकवार
दिनांक : ३०.०३.२०१४


एक संगत

                                                                   लेखक / रचनाकार :   
                                                                    रामप्रसाद रैकवार  


!! एक संगत !!

संगत से गुण होत हे .!
संगत से गुण जाए ..!!

जेसी संगति कीजिए .!
वेसे ही गुण पाए .....!!

एक थी दही कि बूंद ही .!
दे थी उसमे मिलाए ...!!

अभिमान गया फिर दूध का .!
दूध सारा दही हो जाए ........!!

कोन कहाँ किस भेष में ......!
मुर्ख / विद्धवान मिल जाए .!!

यह तो कर्मो के खेल हे .!
सुनलो मेरे भाए ........!!

संगत से गुण होत हे .!
संगत से गुण जाए ..!!

!! जय समाज !!\



बुंदेली कविता

                                              लेखक / रचनाकार : रामप्रसाद रैकवार
                                                       दिनांक : ३०.०३.२०१४

!! बुंदेली कविता !!
!! नहीं रुकत हे अँसुआ !!
नहीं रुकत हे अँसुआ ..!
आँखे हो गई पथराए ..!!
सब जानत हे बे बाँसुरी .!
का से कोन बताए ......!!
सभी विद्धवान हे देश में ..!
कय आँखे थी झपकाय ..!!
कय खुली हे अब आँख तो .!
का से कोन बताए ..........!!
बे कहत रात तो हम हे दिन बताए ..........!
लाईआं भैया ने सीख न,कोन केसे बताए .!!
उड़े हे बे आसमान में .!
का हुईय अब भाय ....!!
में बुंदेली हूँ अपने देश को .!
साँसी दे हूँ बताए ..........!!
नहीं रुकत हे अँसुआ .!
आँखे हो गई पथराए .!!
!! जय समाज !!


Friday, February 28, 2014

सूरज और बालक

कविता - विकास चन्द्र

सूर्य....
हर किसी के भीतर होता है एक सूर्य
हर कोई महसूस करता है सूरज की तपन
और उबल जाता है वह अपनी ही ताप से
मगर सूरज हमेशा तपता ही नहीं रहता
सूर्यास्त के बाद यही रवि चाँद के रूप में दिखने लगता है
और एक नए रूप व रंग में देने लगता है सुकून
इसी तरह बालक हमेशा छोटा ही नहीं रहता
समय के साथ बढ़ता है उसका शरीर
बदलने लगती हैं उसकी भावनाएँ
कि लड़कपन छोडने लगता है उसका दामन
सताने लगती है उसे ज़िंदगी की टीस
कि समाज उसे धकेल देता है परिपक्वता की ओर
और वह प्रवेश कर जाता है दुनिया के मेले में
वो मेला जो लोगों से भरा होने पर भी
हर वक्त तनहाई का एहसास कराता है 











सभी फोटो - बलराम बिन्द

Tuesday, February 18, 2014

समय आने दे तेरी औकात बता देगे

                                                             लेखक 
                                                       बलराम बिन्द 
तेरी लाठी के जबाब जरूर देगे।
समय आने दे तेरी औकात बता देगे।।
तू सोचता है जब चाहे इन्हे सता देगे ।
समय आने दे तेरी औकात बता देगे।।
तेरी कथनी,करनी को देखनी थी ।
समय आने दे तेरी औकात बता देगे।
मैं माझी हूँ, हवा के पहचान करना जनता हूँ ।
समय आने दे तेरी औकात बता देगे।।






Sunday, February 16, 2014

मेरी अवाज

                                                                                 लेखक 
                                                                              बलराम बिन्द 
लिख ले इतिहास कह दे हम भी कम नहीं है ।
तेरा वर्ण झूठा था मेरा आरक्षण सच्चा है ।।
मेरे में इंसानियत झलकती है ।तेरे में हैवानियत झलकती है।  
तेरी बनावट कच्ची थी मेरे बनावट सच्ची होगी ।
देख ले मेरे जन-सैलाब को अब आवाज मेरी होगी ।
अब कहानी हम कहेगे। अब तू कहानी सुन ॥






Friday, February 14, 2014

विचारविहीन समाज .....

                                                                                       लेखक 
                                                                                    बलराम बिंद 
कोई भी समाज हो, उसके पास विचार (thought) नहीं होगा तो उस समाज के लोग कभी धर्म के तरफ झुकाव करगे तो कभी किसी के कुछ कहने पर झुकाव करगे। विचारविहीन समाज एक पशु के समान होता है, जो खिलाओंगे वह खाता है। जरूरत पड़े तो उस पशु को जितना मारना हो मार लेते है। उसी तरह से विचार विहीन समाज के साथ होता है। विचारविहीन बनाने वाला पशुओं के वर्गीकरण रूप  होता है। गाय है ,भैस, बकरी आदि है। धर्म के आड में आदमी को भी वर्गीकरण कर दिया । आदमी होने के वावजूद , वह बिंद, मल्लाह है,माझी है,केवट है,भोई है, गंगपुत्र है ,तुरहा है, निषाद है ,कश्यप आदि जाति के रूप में वर्गीकरण है । कारण है की वर्गीकरण करने से कुछ उल्लू सीधा करने को मिल जाता है । यही कारण है कि बहुत से ऐसे समाज है जो हसिए के शिकार है । वह समाज तो है लेकिन समाज नहीं बन पाया । आप का विचार क्या है .......

Thursday, February 13, 2014

बिरादरी नाराज है क्योंकि हमने अन्याय के खिलाफ कुछ ज्यादा ही जोर से आवाज उठा दी

                                                                                                   सभार 
                                                                                              तहलका पत्रिका 
 बांदा की नरैनी तहसील में पड़ने वाले शाहबाजपुर गांव की शीलू निषाद का स्थानीय विधायक पुरुषोत्तम नरेश द्विवेदी ने दो बार बलात्कार किया. फिलहाल शीलू को पुलिस सुरक्षा मिली हुई है और वो अपने गांव में रहकर फैसले का इंतजार कर रही है.
पहले तो सारी दुनिया ने पूछा, लेकिन अब परिवार तक साथ नहीं. फिर भी पिछले ढाई साल से नीलू एक स्थानीय विधायक के खिलाफ अकेले लड़ रही है.
अपने काले ट्रैक सूट और बालों के कसे हुए जूड़े के साथ खेतों में घूमती शीलू निषाद के अपने व्यक्तित्व में भी उतना ही तीखा विरोधाभास है जितना खांटी बुंदेलखंडी इलाके में बनी उसकी एक कमरे की झोपड़ी और उसके पहनावे में. हम उत्तर प्रदेश में बांदा जिले के शाहबाजपुर गांव में हैं. शीलू से हमारा परिचय बुंदेलखंड के एक पिछड़े इलाके में रहने वाली निचली जाति की एक ऐसी लड़की के तौर पर होता है जो पिछले ढाई साल से राजनीतिक रूप से मजबूत, एक स्थानीय सवर्ण विधायक के खिलाफ एक खतरनाक कानूनी लड़ाई अकेले लड़ रही है. शीलू के मुताबिक बहुजन समाज पार्टी (बसपा) के स्थानीय विधायक पुरुषोत्तम नरेश द्विवेदी ने उसके साथ दो बार बलात्कार किया, उसे भयानक शारीरिक प्रताड़ना दी गई और फिर द्विवेदी ने अपने गुर्गों की मदद से उसी पर चोरी का आरोप लगाकर उसे जेल भिजवा दिया. तब वह सिर्फ 17 साल की थी.
शारीरिक हिंसा के मामलों में पीड़ित की पहचान गोपनीय रखे जाने से संबंधित कई लिखित और अलिखित कानून मौजूद हैं. इसके बावजूद बांदा का नीलू कांड भारत में बलात्कार का एक ऐसा दुर्लभ मामला है जिसे पहचाना ही पीड़िता के नाम से जाता है. भारत के सबसे पिछड़े इलाकों में शुमार बुंदेलखंड जैसे क्षेत्र में रहकर सत्ताधारी पार्टी के स्थानीय विधायक के खिलाफ इंसाफ की लड़ाई लड़ने की पूरी प्रक्रिया ने नीलू को भावनात्मक तौर पर एक मजबूत इंसान में तब्दील किया है. लेकिन थोड़ी-सी बातचीत के बाद जब उसकी हिचक खुलती है तो पता चलता है कि वह अपना यही नाम बदल कर कहीं दूर चले जाना चाहती है. एक सामान्य जीवन जीना चाहती है. शीलू कहती है, ‘मोहे कुछ नहीं करना इन पार्टी और राजनीति से. एक बार फैसला आ जाए फिर मैं कहीं दूर चली जाऊंगी. जहां कोई मेरा नाम शीलूनहीं जानता हो. इतने सारे लोग मिट्टी-मजूरी करके जी रहे हैं शहरन में, मैं भी गारा-मिट्टी करके दो रोटी कमा लूंगी.
यह कहते-कहते वह खामोश हो जाती है. और यहीं साफ दिखता है कि पत्थर की सी इच्छाशक्ति रखने वाली यह लड़की भावनात्मक रूप से कितना टूट चुकी है. नीलू से आगे बात करते हुए  उसके विरोधाभासी व्यक्तित्व की परतें भी सामने आने लगती हैं जो एक लंबी सामाजिक और कानूनी लड़ाई से उपजी हैं.

बांदा की नरैनी तहसील में पड़ने वाले शाहबाजपुर गांव में पहुंचने पर शीलू का पता पूछिए तो स्थानीय लोग लगभग एक ही बात कहते हैं--जिस झोपड़ी के सामने पुलिस के पांच सिपाहियों और एक दरोगा का काफिला बैठा दिखाई दे जाए वही घर है. शीलू अपने एक कमरे के झोपड़े में अकेले रहती है. हमारे पहुंचने पर अपने फोन में बजते पुराने फिल्मी गाने बंद करते हुए वह कहती है, ‘मेरा सर बहुत दुखता रहता है. इसलिए केस से थोड़ी देर के लिए दिमाग हटाने के लिए गाने सुनती रहती हूं.बातचीत की शुरुआत में ही सबसे पहले अपनी उम्र स्पष्ट करते हुए वह कहती है, ‘आज मैं 18 साल और सात महीने की हूं. घटना के समय मेरी उम्र 17 साल और दो महीना थी. असल में, जब मैं बहुत छोटी थी, तभी मेरी मां गुजर गईं.
पिताजी बसपा में पिछले 17 सालों से सक्रिय थे...वो स्थानीय पंचायत स्तर पर काम संभालते थे. द्विवेदी भी यहीं नरैनी से सांसद थे. एक बार दौरे पर आए थे और घर भी आए. मुझे देखते ही मेरे पिता से बोले कि अपनी लड़की से कहो जरा पानी तो पिलाए. मैं पानी लेकर गई तो पूछने लगा कौन क्लास में पढ़ती हो. मैंने कह दिया हमें नहीं पता है, पानी पी लो. तो हमारे पिता से जा के बोला कि तुम्हारी बेटी तो कितनी सुंदर है और कुछ बोलती नहीं है. इसे हमारे यहां भेज दो. वहीं पढ़ाएंगे, काम सिखाएंगे और ब्याह करवा देंगे. मेरे पिता मुझे उसके घर ले भी गए लेकिन मैंने जिद करके मना कर दिया कि मुझे नहीं रहना विधायक के घर. बस तभी से पीछे पड़ गया था ये मेरे.

दरअसल गरीब पृष्ठभूमि की वजह से अपनी मां की मौत के बाद शीलू मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश की सीमा पर बसे हमीरपुर कस्बे में अपनी नानी के गांव चली गई थी. लेकिन वहां भी गरीबी के कारण उसे कुछ ही दिनों में लच्छीपुर में रहने वाली अपनी मौसी के घर भेज दिया गया. सबसे पहले 2010 की सर्दियों में लच्छीपुर से उसका अपहरण किया गया. वह कहती है, ‘सोते हुए मेरे हाथ-पैर-मुंह बांधकर उठवा लिया था. रज्जू पटेल, रावण...सब विधायक के आदमी थे. वो लोग मुझे महुयी के जंगल में ले गए और वहां तीन दिन रखा. वो मुझे भूखा रखते और रात को नदी के ठंडे पानी में डुबो-डुबो कर पूछते कि मैंने विधायक को मना क्यों किया. पीछे मेरे पिता जी ने परेशान होकर पहले नरैनी कोतवाली में शिकायत की और बाद में अतर्रा थाने में.
लेकिन उनकी कोई सुनवाई नहीं हुई. इधर विधायक ने अपनी चाल के अनुसार उन्हें भड़काया कि तुम्हारी लड़की को गुंडे उठा ले गए हैं, हम छुड़वा तो दें पर उसके बाद वो हमारी कोठी पर ही रहेगी. उसका ब्याह भी हम ही करवा देंगे, तुम चिंता मत करो. इस पर मेरे पिता तो विधायक के पैरों में गिर गए और कहा कि बस कैसे भी मेरी बेटी को बचा लो. फिर विधायक के आदमी मुझे उसके यहां ले आए. तब तक मैं बहुत बीमार हो चुकी थी. मेरे पिता के सामने ही विधायक बोला, अब रोना गाना नहीं. यहीं खाना बनाओ, काम करो. हम तुम्हारे लिए लड़का ढूंढ़ कर तुम्हारी शादी करवा देंगे यहीं. तुम उसका भी काम करना और हमारा भी. तब हम लोग समझ ही नहीं पाए थे कि वो किस काम की बात कर रहा है’.
 ‘मैंने गिड़गिड़ाते हुए कहा कि साहेब मैं तुम्हारी मार खा लूंगी, तुम्हारा कूड़ा खा लूंगी, मुझे माफ करो, मैं तुम्हारी लड़की हूं. लेकिन वो जानवरों की तरह मुझ पर टूट पड़ा.
आठ दिसंबर, 2010 को नीलू अतर्रा थाना क्षेत्र में आने वाले पथरा गांव से बरामद हुई और बसपा विधायक पुरुषोत्तम नरेश द्विवेदी के निवास पर एक घरेलू सहायक की तरह काम करने लगी. पिता अच्छेलाल निषाद के बसपा कार्यकर्ता होने की वजह से परिवार को पुरुषोत्तम पर पूरा विश्वास था. लेकिन नौ और दस दिसंबर के बीच की रात नीलू के लिए एक और बुरा सपना बनकर आई. अपने साथ हुई हिंसा को याद करते हुए वह बताती है, ‘हम रात को काम करके सोए थे. वह अचानक आया और हमारी चद्दर हटाते हुए बोला कि हमने जो कहा था, कुछ समझी तुम? कहते हुए हमें कपड़े उतारने के लिए कहने लगा. मैंने गिड़गिड़ाते हुए कहा कि साहेब मैं तुम्हारी मार खा लूंगी, तुम्हारा कूड़ा खा लूंगी, मुझे माफ करो, मैं तुम्हारी लड़की हूं. मैं रोती रही और उसने ब्लेड से मेरे सारे कपड़े फाड़ दिए. फिर वो मुझे जानवरों की तरह चबाने और नोचने लगा. पूरे नाक-कान कट-छिल गए थे. शरीर सूज गया था. पूरे पैरों से खून बह रहा था. फिर मुझे मां की गाली देते हुए बोला कि चुप रहना, अगर किसी को बताया तो गोली मार दूंगा. मैं पूरा दिन चुप-चाप रोती रही और खून बहता रहा. फिर शाम को आया और वही किया. एक रात निकल गई.
तीसरी शाम मैंने अपने पिता को फोन किया तो उन्होंने कहा वो सुबह मुझे लेने पहुंचगे. लेकिन रात को वह मुझ पर फिर टूट पड़ा और मैं किसी तरह पीछे के दरवाजे से भगा आई. सर्दी की रात में रास्ता भी दिखाई नहीं देता था. वहीं तुर्रा पुलिया के नीचे नीचे बने नाले में छिपी पड़ी रही रात भर. फिर सुबह विधायक अपने आदमी और पुलिस के साथ आया और मुझे ढूंढ लिया. मेरे मिलते ही उन्होंने पुलिस को वापस भेज दिया और उसके आदमी मुझे जानवरों की तरह पीटने लगे. लात-घूंसों के साथ-साथ रावण ने मेरे कपड़े फाड़ कर पेशाब के रास्ते में बंदूक की नाल डाल दी. मेरा पूरा शरीर खून से लथपथ हो गया और मैं बेहोश हो गई. फिर दोपहर 12 बजे विधायक मुझे पुलिस थाने ले गया. वहां पता चला मुझ पर चोरी का झूठा मुकदमा दर्ज किया है. शाम आठ बजे तक ये लोग मुझे जेल ले गए. विधायक ने मुझसे कहा कि मैं अदालत में कह दूं कि मैंने चोरी की है वर्ना वो मुझे गोली मार देगा. मैं चुप रही, लेकिन अदालत में मैंने जज को सब कुछ बताया. और फिर मीडिया को भी मालूम चल गया.
शीलू बलात्कार कांड के सुर्खियां बटोरने के साथ ही मामले ने सियासी रंग लेना शुरू कर दिया. कांग्रेस और समाजवादी पार्टी के राज्य स्तरीय नेताओं के वक्तव्यों के बाद तत्कालीन मुख्यमंत्री मायावती ने पहले तो पुरुषोत्तम नरेश द्विवेदी को पार्टी से निष्कासित किया और फिर लगभग एक महीने बाद शीलू की रिहाई के आदेश भी जारी कर दिए. साथ ही पड़ताल के लिए मामला राज्य की क्राइम ब्रांच को सौंप दिया गया. जांच के बाद पुरुषोत्तम नरेश, रावण, वीरेंदर गर्ग, सुरेश मेहता उर्फ रघुवंशी द्विवेदी और राजेंद्र शुक्ला सहित पांचों आरोपितों के खिलाफ आरोप पत्र दाखिल किये गए. इसी बीच सन 2012 में हरीश साल्वे की जनहित याचिका के आधार पर जांच के लिए यह मामला केंद्रीय जांच ब्यूरो यानी सीबीआई को सौंप दिया गया. सीबीआई ने अपने नए आरोप-पत्र में पुरानी धाराओं के साथ-साथ द्विवेदी पर धारा 376 के तहत बलात्कार का आरोप भी तय किया. तीन बार सुप्रीम कोर्ट द्वारा जमानत की अर्जी खारिज किए जाने के बाद द्विवेदी और रावण अब लखनऊ जेल में बंद हैं. मामले की सुनवाई लखनऊ स्थित सीबीआई की विशेष अदालत में चल रही है.
 इस बीच शीलू से मिलने राहुल गांधी से लेकर जया प्रदा, स्मृति ईरानी, रीता जोशी बहुगुणा और विवेक सिंह जैसे भाजपा, सपा और कांग्रेस के कई बड़े नेता पहुंचे. कई पार्टियों ने उसे आर्थिक मदद भी दी. लेकिन इस पूरी लड़ाई के दौरान नीलू ने बहुत कुछ खोया भी. हादसे की शुरुआत में उसके साथ खड़े उसके परिवार के लोग अब उससे बात तक नहीं करना चाहते. अपने साथ हुए न्याय के बारे में पूछने पर वह रोआंसी होकर कहती है, ‘बस फैसले का इंतजार है दीदी. फिर हम चले जाएंगे यहां से कहीं. हमारे पिता, भाई, रिश्तेदार, गांव-वाले...कोई हमसे नहीं बोलता. सबने हमारा साथ छोड़ दिया है. सबको बुरा लगता है कि हमारी झोपड़ी के सामने पुलिस वाले रहते हैं, हमसे मिलने नेता और पत्रकार आते हैं. सबको लगता है कि हमने अपने अन्याय के खिलाफ कुछ ज्यादा ही जोर से आवाज उठा दी.
लेकिन जो हमारे साथ हुआ, उसके बाद धीरे से कैसे आवाज उठाई जाती है, हमें नहीं पता. हमारा बस चलता तो ऐसा करने वालों को पटक के मारते. और हमने न्याय के लिए कितना कुछ सहा है. पचास बार बयान मांगा, पचासों बार दिया. अब गांववाले और हमारी बिरादरी के लोग इस बात से नाराज हैं कि हमने अपने लिए इतनी लड़ाई ही क्यों लड़ी. लेकिन हम अपने साथ हुए को कैसे माफ कर दें? अभी भी हमारा पूरा शरीर दर्द करता है. जेल में 20 दिन खून बहता रहा था और 15 दिन भूखी रही थी. इलाज भी नहीं करवाया था. पेशाब के रास्ते में आज भी टांकों के निशान हैं. पूरा शरीर फाड़ दिया था हमारा. कैसे भूल जाएं हम? अब हम अकेले हैं तो अकेले ही सही, लेकिन आखिर तक लड़ेंगे.’  

http://www.tehelkahindi.com/indinoo/national/1997.html

Monday, February 10, 2014

पहाड़ी पर पेड़ था, पेड़ को तना था, तने को डाली थी, डाली पर चिड़िया थी, चिड़िया बोली चीं चीं चीं ...


                                                                             छाया :
                                                                         विकास चन्द्र




Sunday, February 9, 2014

सुरहा ताल की कुछ झलकिया

                                                                                                                                         फोटोग्राफ                                                                                                                                          बलराम बिंद 
सुरहा ताल मे होने वाला धान 



मेरी नाव और धान 



Tuesday, February 4, 2014

हम भी कम नहीं

                                                                                                               फोटोग्राफर  - बलराम बिन्द 
बाली बाल खेलते ग्रामीण बच्चे (राजपुर के विंद बस्ती )
















बाल के लिए दौड़ता हुआ बच्चा

















                                           बाल हाथ में
                           















   देखते हुए ग्रामीण बच्चे

(चलो गाँव की ओर---फोटोग्राफ)

Friday, January 31, 2014

निषाद मीडिया –अभियान

                                                                                 लेखक
                                                                           बलराम बिन्द
निषाद मीडिया –अभियान
निषाद मीडिया ब्लॉग की शुरुआत 01-09-2013से लिखना शुरू किया। भारतीय इतिहास के मूल निवासी आदिवासी निषाद के इतिहास मछुआरों, आखेटक रूप में मिलता है । निषाद मछली मारने और नाव के पार उतरने के वजह से वह कहीं केवट, तो कहीं मल्लाह,तो विंद  के नाम से जाने लगा । इस तरह से पूरे देश में 150 नाम से जाने लगा । देश के  हर प्रदेश में इसे अलग-अलग नाम से जाने जाता है।  महाराष्ट्र में इसे कोली , भोई कहार, आदि के नाम से जाने जाता है । इतिहास के पन्नों में काम हर कोई (मछली)मारना था।आदिवासी समाज अपने अवश्कता  के अनुसार नाम रखा जैसे- नाव लाने के लिए केवट कहा गया तो मल्लाह तो कही माझी लेकिन यह समाज समझ नहीं पाया की तक तक चालाकी से इसे जाति के रूप में बदलने के काम किया गया है । एक दूसरे से बड़ा बताने का काम किया गया जिसका कारण यह हुआ की यह समाज हसिए का  शिकार हो गया जो खुद शिकार करता था। आज वह हसिए पर खड़ा है। इसके नाम पर राजनीतिक रोटी सेकने के काम कर रहे है इस समाज को आज के परिपेक्ष्य में दर-दर के ठोकर खा रहा है।इस आदिवासी समाज के विकास और बदलाव के पहल में उसकी आर्थिक सामाजिक और राजनीतिक में परिवर्तन के लिए निषाद मीडिया की एक पहल ...आने वाले समय में एक दिशा देने के लिए पथ पर नजर आएगा ।

फेसबूक लिखे गए कुछ विचार -
1-   मित्रों ताली बजाने का वक्त नहीं ताली बजवाने का वक्त है। ताली बजाना छोड़ कर हवा में हाथ लहराना शुरू करों लोग खुद बख़ुद ताली बजाना शुरू कर देगे
2-   बदलाव के राह पर ग्राहक होना है......
गरीब और आम को बदलाव के बात करते है लेकिन नेताओं के कहने का मतलब है कि बदलाव ही ग्राहक है । 
जैसे आप देख सकते है। चुनाव आने पर खुद ही साड़ी,शराब,मुर्गा देने काम करते अब बन गए ग्राहक
3-   जो तेरी समस्या थी वह मेरी भी थी लेकिन तू कभी जाति के नाम पर अलग करता तो कभी धर्म के नाम पर तू कभी ज्यादा जनता था तो मै कभी ...लेकिन तू भी अजीव है हर बार तू अलग करके ही देखता है और शोषण के रूप को ढूढता है ...फिर शोषण करता है गज़ब का नीति है आप की .....
4-   कहने के लिए करोड़ों में हो लेकिन प्रतिनिधित्व अपने को कर ही ना पावे फिर वह किस काम के करोड़ के संख्या में होना ......
5-   स्वार्थ देखा तो पार्टी joins किया दलाल मत कह क्योकि नेता बना अपने भविष्य के लिए न कि समाज के भविष्य के लिए .........मित्रों चुनाव आने वाला है सावधान आगे सामाजिक दलाल है जरा देख कर चले ...नहीं तो गढ़े में गीर जवोगे ...बच के ..........
6-   .काम करना है तो समाज का काम कर, नहीं कि पार्टीयों के दलाल बन जा ...
7-   पैदा करना है तो खोजकरता पैदा कर न कि मजदुर पैदा कर .....
8-   समाज का काट रहे है हाथ 
गाँव में निषाद संस्कृति के जातियों ( बिंद, मल्लाह, साहनी, केवट,तुरहा) से पूछने के आधार पर हर गाँव में इस समाज के कुछ लोगो की आर्थिक रूप से मजबूत है, सही है, दस गाँव के राजनीत सर्वे के आधार पर आम जनता बताएँ की जो लोग बड़े लोगो के संपर्क में वह चुनाव आने के समय वह कुछ पैसा,शराब, साड़ी का यह लोग वितरण करते है, और जहाँ वोट देने के लिए कहते है वोट देना पड़ता है।

9-   जब तक हसिए के समाज जातिय भवना से हटकर सामाजिक-संस्कृति के बात नहीं करेगी .....तब तक हसिए के समाज का विकास नहीं होगा अब आप के ऊपर है ..............

Tuesday, January 28, 2014

मेरे सुरहा ताल का अदूभूत नजारा .........

मेरे सुरहा ताल का अदूभूत नजारा .........
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बैठा क्यों है 
कभी पंख को फैला के देख
 आकाश तेरे साथ है ...
फोटोग्राफर -बलराम बिन्द 

कौन थे तिलका मांझी

                                                                                    लेखक
                                                                          सुरेश कुमार एकलभ्य

कौन थे तिलका मांझी !!!
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तिलका मांझी ब्रिटिश हुकूमत की सत्ता को चुनौती देने वाले मछुआ समुदाय के वीर आदिवासी थे। तिलका मांझी का जन्म एक मांझी परिवार में ११ फरवरी, १७५० को बिहार सुल्तानगंज थाने के तिलकपुर गाँव में हुआ था। १७७१ से १७८४ तक उन्होंने ब्रिटिश सत्ता के विरुद्ध लड़ाई लड़ी और उन्हें नाको चने चबाये। तिलका मांझी ने १८५४ के स्वतंत्रता संग्राम से ९० वर्ष पूर्व संथाल विद्रोह का नेतृत्व भी किया। वह एक ऐसे योद्धा थे जिन्होंने बिहार के भागलपुर से सर्वप्रथम अंग्रेजो के विरुद्ध विद्रोह का बिगुल फूंका। बाद में इस वीर पुत्र , स्वतंत्रता सेनानी को भागलपुर जैल में फांसी दे दी गई। हमारे इसी महान सिपाही के नाम पर भागलपुर में तिलका मांझी यूनिवर्सिटी के नाम से एक शिक्षा का केंद्र भी स्थापित किया गया है।

समुदाय के इतिहास पुरुष राजा नल

                                                                                    लेखक
                                                                          सुरेश कुमार एकलभ्य

समुदाय के इतिहास पुरुष राजा नल !!! 
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राजा नल का नाम एक इतिहास पुरुष, प्रेम संघर्ष और समुदाय के गौरव के रूप में सदेव स्थापित रहेगा। आज भी विरह, आल्लाह, किस्से और रागनियों में राजा नल दमयंती की कथा कही जाती है। समुदाय के इस महान शासक की प्रेम कथा, जीवन संघर्ष का अनेक विदेशी भाषाओं में अनुवाद हुआ है। बोप लैटिन में तथा डीन मिलमैन ने अंग्रेजी कविता में अनुवाद करके पश्चिम को भी इस कथा से भली भांति परिचित कराया है।

राजा नल निषाद देश ( बाद में निषध देश किया गया) के राजा वीरसेन के पुत्र थे। राजा वीरसेन एक महान प्रशासक और दयालु प्रवर्ति के व्यक्ति थे। दमयन्ती विदर्भ (पूर्वी महाराष्ट्र) नरेश की पुत्री थी। वह भी बहुत सुन्दर और गुणवान थी। नल उसके सौंदर्य की प्रशंसा सुनकर उससे प्रेम करने लगा। जब दमयंती को राजा नल के विषय में पता चला तो वह भी उन पर मोहित हो गई और मन ही मन उन्हें अपना वर मानने लगी। बाद में अनेको कठिनाइयों से संघर्ष करते हुए राजा नल और दमयंती ने विजय प्राप्त की। 

आश्चर्य की बात है कि हमारा समुदाय आज भी इस बात से पूरी तरह अनभिज्ञ है कि राज नल और राजा वीरसेन उनके महान पूर्वजों में से एक हैं। जिस महान राजा से पूरी दुनिया परिचत है उसके वंसज आज उसी से अनजान बने हुए हैं।