सभार
तहलका पत्रिका
बांदा की नरैनी तहसील में पड़ने वाले शाहबाजपुर
गांव की शीलू निषाद का स्थानीय विधायक पुरुषोत्तम नरेश द्विवेदी ने दो बार
बलात्कार किया. फिलहाल शीलू को पुलिस सुरक्षा मिली हुई है और वो अपने गांव में
रहकर फैसले का इंतजार कर रही है.
पहले तो सारी दुनिया
ने पूछा,
लेकिन अब परिवार तक साथ नहीं. फिर भी पिछले ढाई साल से नीलू एक
स्थानीय विधायक के खिलाफ अकेले लड़ रही है.
अपने काले ट्रैक सूट
और बालों के कसे हुए जूड़े के साथ खेतों में घूमती शीलू निषाद के अपने व्यक्तित्व
में भी उतना ही तीखा विरोधाभास है जितना खांटी बुंदेलखंडी इलाके में बनी उसकी एक
कमरे की झोपड़ी और उसके पहनावे में. हम उत्तर प्रदेश में बांदा जिले के शाहबाजपुर
गांव में हैं. शीलू से हमारा परिचय बुंदेलखंड के एक पिछड़े इलाके में रहने वाली
निचली जाति की एक ऐसी लड़की के तौर पर होता है जो पिछले ढाई साल से राजनीतिक रूप से
मजबूत,
एक स्थानीय सवर्ण विधायक के खिलाफ एक खतरनाक कानूनी लड़ाई अकेले लड़
रही है. शीलू के मुताबिक बहुजन समाज पार्टी (बसपा) के स्थानीय विधायक पुरुषोत्तम
नरेश द्विवेदी ने उसके साथ दो बार बलात्कार किया, उसे भयानक
शारीरिक प्रताड़ना दी गई और फिर द्विवेदी ने अपने गुर्गों की मदद से उसी पर चोरी का
आरोप लगाकर उसे जेल भिजवा दिया. तब वह सिर्फ 17 साल की थी.
शारीरिक हिंसा के
मामलों में पीड़ित की पहचान गोपनीय रखे जाने से संबंधित कई लिखित और अलिखित कानून
मौजूद हैं. इसके बावजूद बांदा का नीलू कांड भारत में बलात्कार का एक ऐसा दुर्लभ
मामला है जिसे पहचाना ही पीड़िता के नाम से जाता है. भारत के सबसे पिछड़े इलाकों
में शुमार बुंदेलखंड जैसे क्षेत्र में रहकर सत्ताधारी पार्टी के स्थानीय विधायक के
खिलाफ इंसाफ की लड़ाई लड़ने की पूरी प्रक्रिया ने नीलू को भावनात्मक तौर पर एक मजबूत
इंसान में तब्दील किया है. लेकिन थोड़ी-सी बातचीत के बाद जब उसकी हिचक खुलती है तो
पता चलता है कि वह अपना यही नाम बदल कर कहीं दूर चले जाना चाहती है. एक सामान्य
जीवन जीना चाहती है. शीलू कहती है, ‘मोहे कुछ
नहीं करना इन पार्टी और राजनीति से. एक बार फैसला आ जाए फिर मैं कहीं दूर चली
जाऊंगी. जहां कोई मेरा नाम ‘शीलू’ नहीं
जानता हो. इतने सारे लोग मिट्टी-मजूरी करके जी रहे हैं शहरन में, मैं भी गारा-मिट्टी करके दो रोटी कमा लूंगी.’
यह कहते-कहते वह
खामोश हो जाती है. और यहीं साफ दिखता है कि पत्थर की सी इच्छाशक्ति रखने वाली यह
लड़की भावनात्मक रूप से कितना टूट चुकी है. नीलू से आगे बात करते हुए उसके विरोधाभासी व्यक्तित्व की परतें भी सामने
आने लगती हैं जो एक लंबी सामाजिक और कानूनी लड़ाई से उपजी हैं.
बांदा की नरैनी तहसील
में पड़ने वाले शाहबाजपुर गांव में पहुंचने पर शीलू का पता पूछिए तो स्थानीय लोग
लगभग एक ही बात कहते हैं--जिस झोपड़ी के सामने पुलिस के पांच सिपाहियों और एक दरोगा
का काफिला बैठा दिखाई दे जाए वही घर है. शीलू अपने एक कमरे के झोपड़े में अकेले
रहती है. हमारे पहुंचने पर अपने फोन में बजते पुराने फिल्मी गाने बंद करते हुए वह
कहती है,
‘मेरा सर बहुत दुखता रहता है. इसलिए केस से थोड़ी देर के लिए दिमाग
हटाने के लिए गाने सुनती रहती हूं.’ बातचीत की शुरुआत में ही
सबसे पहले अपनी उम्र स्पष्ट करते हुए वह कहती है, ‘आज मैं 18 साल और सात महीने की हूं. घटना के समय मेरी उम्र 17
साल और दो महीना थी. असल में, जब मैं बहुत छोटी थी, तभी मेरी मां गुजर गईं.
पिताजी बसपा में
पिछले 17 सालों से सक्रिय थे...वो स्थानीय पंचायत स्तर पर काम संभालते थे.
द्विवेदी भी यहीं नरैनी से सांसद थे. एक बार दौरे पर आए थे और घर भी आए. मुझे
देखते ही मेरे पिता से बोले कि अपनी लड़की से कहो जरा पानी तो पिलाए. मैं पानी लेकर
गई तो पूछने लगा कौन क्लास में पढ़ती हो. मैंने कह दिया हमें नहीं पता है, पानी पी लो. तो हमारे पिता से जा के बोला कि तुम्हारी बेटी तो कितनी सुंदर
है और कुछ बोलती नहीं है. इसे हमारे यहां भेज दो. वहीं पढ़ाएंगे, काम सिखाएंगे और ब्याह करवा देंगे. मेरे पिता मुझे उसके घर ले भी गए लेकिन
मैंने जिद करके मना कर दिया कि मुझे नहीं रहना विधायक के घर. बस तभी से पीछे पड़
गया था ये मेरे.’

दरअसल गरीब पृष्ठभूमि
की वजह से अपनी मां की मौत के बाद शीलू मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश की सीमा पर
बसे हमीरपुर कस्बे में अपनी नानी के गांव चली गई थी. लेकिन वहां भी गरीबी के कारण
उसे कुछ ही दिनों में लच्छीपुर में रहने वाली अपनी मौसी के घर भेज दिया गया. सबसे
पहले 2010 की सर्दियों में लच्छीपुर से उसका अपहरण किया गया. वह कहती है, ‘सोते हुए मेरे हाथ-पैर-मुंह बांधकर उठवा लिया था. रज्जू पटेल, रावण...सब विधायक के आदमी थे. वो लोग मुझे महुयी के जंगल में ले गए और
वहां तीन दिन रखा. वो मुझे भूखा रखते और रात को नदी के ठंडे पानी में डुबो-डुबो कर
पूछते कि मैंने विधायक को मना क्यों किया. पीछे मेरे पिता जी ने परेशान होकर पहले
नरैनी कोतवाली में शिकायत की और बाद में अतर्रा थाने में.
लेकिन उनकी कोई
सुनवाई नहीं हुई. इधर विधायक ने अपनी चाल के अनुसार उन्हें भड़काया कि तुम्हारी
लड़की को गुंडे उठा ले गए हैं, हम छुड़वा तो दें पर
उसके बाद वो हमारी कोठी पर ही रहेगी. उसका ब्याह भी हम ही करवा देंगे, तुम चिंता मत करो. इस पर मेरे पिता तो विधायक के पैरों में गिर गए और कहा
कि बस कैसे भी मेरी बेटी को बचा लो. फिर विधायक के आदमी मुझे उसके यहां ले आए. तब
तक मैं बहुत बीमार हो चुकी थी. मेरे पिता के सामने ही विधायक बोला, अब रोना गाना नहीं. यहीं खाना बनाओ, काम करो. हम
तुम्हारे लिए लड़का ढूंढ़ कर तुम्हारी शादी करवा देंगे यहीं. तुम उसका भी काम करना
और हमारा भी. तब हम लोग समझ ही नहीं पाए थे कि वो किस काम की बात कर रहा है’.
‘मैंने गिड़गिड़ाते हुए कहा कि
साहेब मैं तुम्हारी मार खा लूंगी, तुम्हारा कूड़ा खा लूंगी,
मुझे माफ करो, मैं तुम्हारी लड़की हूं. लेकिन
वो जानवरों की तरह मुझ पर टूट पड़ा.’
आठ दिसंबर,
2010 को नीलू अतर्रा थाना क्षेत्र में आने वाले पथरा गांव से बरामद
हुई और बसपा विधायक पुरुषोत्तम नरेश द्विवेदी के निवास पर एक घरेलू सहायक की तरह
काम करने लगी. पिता अच्छेलाल निषाद के बसपा कार्यकर्ता होने की वजह से परिवार को
पुरुषोत्तम पर पूरा विश्वास था. लेकिन नौ और दस दिसंबर के बीच की रात नीलू के लिए
एक और बुरा सपना बनकर आई. अपने साथ हुई हिंसा को याद करते हुए वह बताती है,
‘हम रात को काम करके सोए थे. वह अचानक आया और हमारी चद्दर हटाते हुए
बोला कि हमने जो कहा था, कुछ समझी तुम? कहते हुए हमें कपड़े उतारने के लिए कहने लगा. मैंने गिड़गिड़ाते हुए कहा कि
साहेब मैं तुम्हारी मार खा लूंगी, तुम्हारा कूड़ा खा लूंगी,
मुझे माफ करो, मैं तुम्हारी लड़की हूं. मैं
रोती रही और उसने ब्लेड से मेरे सारे कपड़े फाड़ दिए. फिर वो मुझे जानवरों की तरह
चबाने और नोचने लगा. पूरे नाक-कान कट-छिल गए थे. शरीर सूज गया था. पूरे पैरों से
खून बह रहा था. फिर मुझे मां की गाली देते हुए बोला कि चुप रहना, अगर किसी को बताया तो गोली मार दूंगा. मैं पूरा दिन चुप-चाप रोती रही और
खून बहता रहा. फिर शाम को आया और वही किया. एक रात निकल गई.
तीसरी शाम मैंने अपने
पिता को फोन किया तो उन्होंने कहा वो सुबह मुझे लेने पहुंचगे. लेकिन रात को वह मुझ
पर फिर टूट पड़ा और मैं किसी तरह पीछे के दरवाजे से भगा आई. सर्दी की रात में
रास्ता भी दिखाई नहीं देता था. वहीं तुर्रा पुलिया के नीचे नीचे बने नाले में छिपी
पड़ी रही रात भर. फिर सुबह विधायक अपने आदमी और पुलिस के साथ आया और मुझे ढूंढ
लिया. मेरे मिलते ही उन्होंने पुलिस को वापस भेज दिया और उसके आदमी मुझे जानवरों की
तरह पीटने लगे. लात-घूंसों के साथ-साथ रावण ने मेरे कपड़े फाड़ कर पेशाब के रास्ते
में बंदूक की नाल डाल दी. मेरा पूरा शरीर खून से लथपथ हो गया और मैं बेहोश हो गई.
फिर दोपहर 12 बजे विधायक मुझे पुलिस थाने ले गया. वहां
पता चला मुझ पर चोरी का झूठा मुकदमा दर्ज किया है. शाम आठ बजे तक ये लोग मुझे जेल
ले गए. विधायक ने मुझसे कहा कि मैं अदालत में कह दूं कि मैंने चोरी की है वर्ना वो
मुझे गोली मार देगा. मैं चुप रही, लेकिन अदालत में मैंने जज
को सब कुछ बताया. और फिर मीडिया को भी मालूम चल गया.’
शीलू बलात्कार कांड
के सुर्खियां बटोरने के साथ ही मामले ने सियासी रंग लेना शुरू कर दिया. कांग्रेस
और समाजवादी पार्टी के राज्य स्तरीय नेताओं के वक्तव्यों के बाद तत्कालीन
मुख्यमंत्री मायावती ने पहले तो पुरुषोत्तम नरेश द्विवेदी को पार्टी से निष्कासित
किया और फिर लगभग एक महीने बाद शीलू की रिहाई के आदेश भी जारी कर दिए. साथ ही
पड़ताल के लिए मामला राज्य की क्राइम ब्रांच को सौंप दिया गया. जांच के बाद
पुरुषोत्तम नरेश, रावण, वीरेंदर
गर्ग, सुरेश मेहता उर्फ रघुवंशी द्विवेदी और राजेंद्र शुक्ला
सहित पांचों आरोपितों के खिलाफ आरोप पत्र दाखिल किये गए. इसी बीच सन 2012 में हरीश साल्वे की जनहित याचिका के आधार पर जांच के लिए यह मामला
केंद्रीय जांच ब्यूरो यानी सीबीआई को सौंप दिया गया. सीबीआई ने अपने नए आरोप-पत्र
में पुरानी धाराओं के साथ-साथ द्विवेदी पर धारा 376 के तहत
बलात्कार का आरोप भी तय किया. तीन बार सुप्रीम कोर्ट द्वारा जमानत की अर्जी खारिज
किए जाने के बाद द्विवेदी और रावण अब लखनऊ जेल में बंद हैं. मामले की सुनवाई लखनऊ
स्थित सीबीआई की विशेष अदालत में चल रही है.
इस बीच शीलू से मिलने राहुल गांधी से लेकर जया
प्रदा,
स्मृति ईरानी, रीता जोशी बहुगुणा और विवेक
सिंह जैसे भाजपा, सपा और कांग्रेस के कई बड़े नेता पहुंचे. कई
पार्टियों ने उसे आर्थिक मदद भी दी. लेकिन इस पूरी लड़ाई के दौरान नीलू ने बहुत कुछ
खोया भी. हादसे की शुरुआत में उसके साथ खड़े उसके परिवार के लोग अब उससे बात तक
नहीं करना चाहते. अपने साथ हुए न्याय के बारे में पूछने पर वह रोआंसी होकर कहती है,
‘बस फैसले का इंतजार है दीदी. फिर हम चले जाएंगे यहां से कहीं.
हमारे पिता, भाई, रिश्तेदार, गांव-वाले...कोई हमसे नहीं बोलता. सबने हमारा साथ छोड़ दिया है. सबको बुरा
लगता है कि हमारी झोपड़ी के सामने पुलिस वाले रहते हैं, हमसे
मिलने नेता और पत्रकार आते हैं. सबको लगता है कि हमने अपने अन्याय के खिलाफ कुछ
ज्यादा ही जोर से आवाज उठा दी.
लेकिन जो हमारे साथ
हुआ,
उसके बाद धीरे से कैसे आवाज उठाई जाती है, हमें
नहीं पता. हमारा बस चलता तो ऐसा करने वालों को पटक के मारते. और हमने न्याय के लिए
कितना कुछ सहा है. पचास बार बयान मांगा, पचासों बार दिया. अब
गांववाले और हमारी बिरादरी के लोग इस बात से नाराज हैं कि हमने अपने लिए इतनी लड़ाई
ही क्यों लड़ी. लेकिन हम अपने साथ हुए को कैसे माफ कर दें? अभी
भी हमारा पूरा शरीर दर्द करता है. जेल में 20 दिन खून बहता
रहा था और 15 दिन भूखी रही थी. इलाज भी नहीं करवाया था.
पेशाब के रास्ते में आज भी टांकों के निशान हैं. पूरा शरीर फाड़ दिया था हमारा.
कैसे भूल जाएं हम? अब हम अकेले हैं तो अकेले ही सही, लेकिन आखिर तक लड़ेंगे.’
http://www.tehelkahindi.com/indinoo/national/1997.html